मत भूलना

mat bhulna

आदर्श भूषण

आदर्श भूषण

मत भूलना

आदर्श भूषण

मत भूलना कि

हर झूठ एक सच के सम्मुख निर्लज्ज प्रहसन है

हर सच एक झूठ का न्यायिक तुष्टिकरण

तुम प्रकाश की अनुपस्थिति का

एक टुकड़ा अंधकार

अपनी आँखों पर बाँधकर

नेत्रहीन होने का ढोंग करते हो

दुनिया के सारे रंग मानुषी हैं

सारे चेहरे नक़ली हैं

सारी शराफ़तें चालबाज़ियाँ हैं

तमाम शह और मातों में उलझे हुए तुम

उतने ही रंग देखते हो और बनाते हो

जितनी तुम्हारी आँखों का अंधबिंदु

तुम्हें आँखों की दुनिया के

पीछे का खड़ा हिस्सा दिखाता है

तुम उतने ही चेहरे देखते हो

जितने तुम्हारे सामने बिछाए जाते हैं

तुम उतनी ही शराफ़त पालते हो

जितनी को खिलाने के लिए तुम्हारे पास चारा है

मत भूलना कि

हर सुख किसी दुःख के पुनरागमन की प्रतीक्षा है

हर दुःख किसी सुख पर विस्मायादिबोधक चिह्न

तुम आवाज़ों की भीड़ में

मौन का एक जलता हिस्सा

अपने मुँह में डालकर

मूक होने का ढोंग करते हो

दुनिया के सारे दुःख

एक विसर्ग का बोझ ढोते-ढोते धराशायी हो चुके हैं

सारे नेत्रों का जल अपनी दिशा बदलकर

अंतस में बहता हुआ

उर तक पहुँचकर हिमखंड बन चुका है

सारे व्यंजन स्वरों से स्वातंत्र्य

एक मौन स्वीकार चुके हैं

तुम उतनी ही पीड़ा ढोते हो

जितना वज़न रीढ़ उठा सके

तुम उतना ही हिम पिघला सकते हो

जितनी तुम्हारे शरीर की ऊष्मा है

तुम उतना ही बोल सकते हो

जितनी विकसित तुम्हारी भाषा है

मत भूलना कि

तुम्हारे हाथों में जो अन्न से भरा हुआ पात्र है

वह किसी की बोई हुई पीड़ा पर

उपजा हुआ सुख है।

स्रोत :
  • रचनाकार : आदर्श भूषण
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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