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मनुष्य का रास्ता

manushya ka rasta

एनरीक़ पेना बैरीनिशिया

अन्य

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एनरीक़ पेना बैरीनिशिया

मनुष्य का रास्ता

एनरीक़ पेना बैरीनिशिया

और अधिकएनरीक़ पेना बैरीनिशिया

    मुझे मालूम ही नहीं हो पाया

    कि वह तुम्हारा आकाश था कि मेरा

    वह तुम्हारा सपना था या मेरा—

    वह तुम्हारा पागलपन था या मेरा

    पानी की सतह पर एक आलोक-धारा

    सड़क की तरह लगती थी

    उस पर एक जलयान था

    जलयान पर किसी की क़िस्मत लदी थी—

    हवाओं के कुंज, धूपछाँह के कुंज

    नीली बारिश तमाम दृश्य की

    आत्मा की तरह पवित्र थी

    मुझे मालूम नहीं हो पाया

    कि वह समुद्र समुद्र ही था या और कुछ

    अगर मैं कहता हूँ कि वह समुद्र है, तो

    शायद वह समुद्र नहीं था

    मैं कहूँ कि समुद्र नहीं था तो निश्चय वह समुद्र ही था!

    पता नहीं कितनी देर यह सपना

    दूसरे सपनों से स्थगित रहा

    हवाओं की पाँखुरियों वाली एक नन्हीं कमलिनी

    नरक के ऊपर का आकाशदीप

    मुझे पता ही नहीं लग पाया

    कि वह सपना तुम्हारा था या मेरा!

    जो अपनी राह चुन लेता है

    फिर उसे अपनी राह को निबाहना होता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 292)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : एनरीक़ पेना बैरीनिशिया
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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