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मंजरा

manjra

स्मिता सिन्हा

अन्य

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और अधिकस्मिता सिन्हा

    तुमने कहा—नदी

    मैं खिलखिलाकर हँस पड़ी

    तुमने कहा—हवा

    मैंने बादलों पर फैला दिए

    अपने दोनों हाथ

    तुमने कहा—सपने

    मैं तितलियों से माँग लाई

    कुछ चटख़ और सुर्ख़ रंग

    तुमने कहा—आकाश

    मैंने मुस्कुराते हुए

    तुम्हारा नाम लिया

    तुमने कहा—विदा

    और मरती चली गई मेरी आँखों में

    तुम्हारी सबसे प्रिय वह सुरमयी मछली

    समझने वाली बात है कि

    मेरी आँखों में अब भी उतरती है वही साँझ

    मेरी आँखों में अब भी जलती है वही आग

    उस काले कौए की आँखें

    और भी काली-काली हुई जाती हैं

    झुलसते जाते हैं कबूतरों के पर

    बिल्ली का एक बच्चा भागता है

    डर कर इधर से उधर

    फ़ाख़्ता कूँ-कूँ करती

    उड़ती चली जाती है कहीं दूर

    और एक हरियाया दरख़्त जल कर

    ठूँठ हुआ चला जाता है

    समझने वाली बात है कि

    अब भी हर रोज़ फूटती है

    मेरे देह से एक नदी

    अब भी हर रोज़

    मैं खिलखिलाकर हँसती हूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्मिता सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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