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बारिश और पपीहा

barish aur papiha

अनुवाद : सिद्धनाथ प्रसाद

लनचेनबा मीतै

अन्य

अन्य

लनचेनबा मीतै

बारिश और पपीहा

लनचेनबा मीतै

और अधिकलनचेनबा मीतै

    थककर चूर होने तक आँखें

    रोता है आकाश

    पता है मुझे

    सचमुच दुखी है वह

    कोशिश भी की कई बार रोकने के आँसू

    लेकिन क्या कुछ और मिला उसे

    रोते-रोते इसी तरह

    अपने पूरे चेहरे पर काले दागों के सिवा!

    छोटे-छोटे बच्चों ने

    भिगो डाला अपने को आकाश के आँसुओं से

    खेलते हैं वे ख़ुश-ख़ुश कीचड़ में

    गरीब माँएँ दुखी होतीं घबरातीं

    बच्चों की बीमारी के लिए आशंकित

    एक जून रोटी के ऊपर एक शीशी दवा का

    वज़न उठाने के विचार में बार-बार

    देखतीं माताएँ आकाश की ओर

    ताकि वह देख ले शक्ल उनके बच्चों की और उनकी

    खड़ी होकर बार-बार।

    कभी-कभी काँप जाता शरीर थर-थर

    टूट जाने पर संबंध भूत और वर्तमान का

    लेकिन क्या किया जाए?

    मुश्किल तो यह है—

    कि मुखौटा पहने पपीहों का झुंड

    सूखी गर्दन की चोंच को उठा-उठा

    मचा रहा पुकार अनबुझी प्यास बुझाने की

    भीतर भी बाहर भी

    दूर भी निकट भी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुझे नहीं खेया नाव (पृष्ठ 6)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : लनचेनबा मीतै
    • प्रकाशन : हिंदी लेखक मंच, मणिपुर
    • संस्करण : 2000

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