Font by Mehr Nastaliq Web

मंदिर और म्यूजियम

mandir aur myujiyam

मनोज मल्हार

अन्य

अन्य

मनोज मल्हार

मंदिर और म्यूजियम

मनोज मल्हार

और अधिकमनोज मल्हार

    मंदिर

    प्राचीन कालीन वातावरण में

    पत्थरों को काटकर बनाए नक्काशीदार खंभे

    देवमूर्तियाँ खंभों और दीवारों पर स्थिर-से

    कोई गति नहीं मूर्तियाँ ही थी...

    लोग-बाग इत्मीनान से हाथ जोड़े नारा लगाते

    बड़ी घंटियाँ जगह-जगह

    बजाने के लिए ही...

    कुछ ही लोग घंटियाँ बजा रहे थे।

    यहीं आत्मविश्वास देख सकते थे शायद...

    जनेऊ, टीकाधारी थाल में चंदन दीप ज्योति लिए

    देव पूजा की तैयारी में थे शायद...

    स्त्रियाँ हाथ जोड़े

    देव प्रतिमा दर्शन की आस में...

    चेहरे पर मध्यकालीन कातरता का भाव...

    युगों से प्यासी ख़्वाहिशें

    लहर की तरह गतिमान।

    मुक्ति की इच्छाएँ...

    क्या सभी मंदिर में मुक्ति की इच्छा लिए आते है?

    कुछ तो अन्नपूर्णता चाहते हैं कुछ दुखों अभावों से मुक्ति...

    कुछ संतानों की रक्षा चाहते हैं

    कुछ...पल...एक पल का दर्शन।

    युगों-युगों तक फलने वाला स्वग्रहित आशीष

    ज्योति में जगमगाते ईश्वर आत्मविश्वासपूर्ण नज़र आते हैं

    घंटा बजने और दीप जलने पर मौन ही रहते हैं...

    मौन उनका प्रिय शगल।

    हँस बोलकर देवत्व में क्यूँ बट्टा लगाएँ...

    ...बाहर चबूतरे पर माँ हाथों में कई सारी मूर्तियाँ, माला थामे

    अपनी पूर्ण प्रतिभा, पूरा जोर लग रही है...

    वस्तुओं के लाभ और गुण बता रही...

    कुछ इस तरह कि जीवन का बहुत कुछ दाँव पर लगा हो...

    या बिक जाने पर कुछ बेहद मूल्यवान-सा कुछ मिल जाए...

    आँखों की कातर आशाएँ मर जी रही हैं...

    गहराते अँधकार में आँखों की भुकभुकाती ज्योति...

    म्यूजियम

    वहाँ सिर्फ़ एक प्रोफ़ेसर मिले।

    ऊँचे पेड़ ख़ुशबूदार हवा में लहराते से

    खिलखिलाता हँसता जंगल।

    गलियारों की खिड़कियाँ भीनी धूप

    घुमावदार लता को दिखाती...

    दीवारों पर बहुत से चेहरे पंक्तिबद्ध...

    भौतिकविद, रसायन शास्त्री, अंतरिक्ष में खोज करने वाले।

    उनकी आँखें अब भी कुछ निरीक्षण कर रहे है वायु की गति

    प्रकाश की तीव्रता और किसी पेंसिल की नोक का व्यास...

    शीशों में फ़्रेमबद्ध श्वेत श्याम चित्र...

    कोशिकाओं को सूक्ष्मदर्शी से देखा जा रहा...

    बड़ी तश्तरियाँ अदृश्य सिग्नल प्राप्त करती हुई।

    सफ़ेद धुएँ के साथ अंतरिक्ष का सफ़र शुरू।

    रासायनिक प्रयोगों के चार्ट।

    कुछ गोल आकृतियाँ इधर-उधर जाती हुई।

    परस्पर संलयित होती शताब्दियाँ चेतनशील करती

    जिज्ञासा जगाती उत्सुकता पैदा करती है।

    ऐसा कैसे हुआ और वैसा क्यूँ नहीं हो रहा...

    हम सोचते से रह जाते हैं बस

    और बाहर बारिश शुरू हो जाती है...

    जंगल की बारिश।

    कक्ष, दीवारें, गलियाँ घूम

    प्रोफ़ेसर मेरी देखते हैं।

    मैं उनकी ओर।

    मैं उन्हें बताता हूँ मेरे कुछ दोस्त हैं उधर बाहर।

    वे मंदिरों के लिए घंटों धक्का-मुक्की सह सकते हैं

    पर खाली से इस म्यूजियम में नहीं आना चाहते।

    मैं उनकी फ़ोटो खेंचता हूँ।

    वे मेरी फिर हम चले जाते हैं।

    म्यूजियम अगले विजिटर के इंतज़ार में

    दिन–रातें बिताता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज मल्हार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए