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मकान मालकिन

makan malkin

नरेंद्र गौड़

अन्य

अन्य

नरेंद्र गौड़

मकान मालकिन

नरेंद्र गौड़

और अधिकनरेंद्र गौड़

    पहली बरसात हुई

    इस घर में

    रहते हुए

    कोई लड़की नहीं खड़ी

    बाहर आँगन में

    दुपट्टे का कोना

    निचोड़ती हुई

    घूम रही बूढ़ी मकान मालकिन

    जिसकी गुज़र-बसर का साधन

    फ़क़त मैं इकलौता किराएदार

    कई बार देख चुकी

    कुठ्ठरनुमा कमरे के भीतर आकर

    कहीं से पानी टपकता तो नहीं

    चारपाई पड़ी है

    तुम उसे बुनवा सको

    बिछ जाएगी

    इतनी तो है जगह

    छोटी-सी अलमारी भी

    निकलवा दूँगी

    किताबें नहीं फैलेंगी ज़मीन पर

    छत टीन की है

    खिड़की खोल दोगे गर्मियों में

    कितनी आएगी हवा

    कैसे बता पाती लेकिन

    हवा का विस्तार

    बाथरूम कही जाने वाली

    तंग जगह में

    मेरी जूठी थाली कटोरी भी

    चमका रही थी जहाँ वह

    अपने बर्तनों के साथ

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 134-136 (पृष्ठ 115)
    • संपादक : मनोहर वर्मा
    • रचनाकार : नरेंद्र गौड़

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