Font by Mehr Nastaliq Web

मैं और मेरा वक़्त

main aur mera waqt

श्याम परमार

अन्य

अन्य

श्याम परमार

मैं और मेरा वक़्त

श्याम परमार

और अधिकश्याम परमार

    अच्छा होता मुझे शब्दों और स्थितियों की

    पहचान नहीं होती

    इस बात का ज्ञान होता कि समय हाथों से

    निकला जा रहा है।

    दिन संदर्भों के बिना पूरा हो जाता

    और रात का अर्थ मेरे लिए इतना होता कि मैं

    लेटते ही ख़र्राटे भरता

    किसी के होने-न होने का असर होता

    यह पता होता कि कौन किस बात को

    कब और किस इरादे से कह रहा है

    यह कि उसके कहने और करने में कितना

    फ़ासला है

    और यह भी कि फ़ासले को कौन किस मतलब से

    नापता है

    या उसमें टाँगें गाड़ कर

    कौन अपना सिर उठाता है

    यह कि उसके लिए शब्दों को कौन योजनाओं की

    इमारतों में

    खुला छोड़ देता है

    कि अर्थ की तसवीरें ही पनाह माँगती हैं

    अच्छा होता किन्हीं बातों को मेरी आँखों में

    जगह नहीं मिलती

    तर्क की सतहों पर अंदर की आँखें

    संबंधों के संबंधों को देखती

    अच्छा होता सतहों के नीचे अपेक्षाए नहीं कुलबुलाती

    भीड़ में मेरी महत्वाकांक्षाए उतावली होती

    यह सब नहीं होता

    मैं होता 'मैं'-सीधा और आसान

    और भागता हुआ समय गुसैल होने के बजाए

    हँसता हुआ

    एक नंगा बालक होता

    स्रोत :
    • पुस्तक : निषेध (पृष्ठ 91)
    • संपादक : जगदीश चतुर्वेदी
    • रचनाकार : श्याम परमार
    • प्रकाशन : ज्ञान भारती प्रकाशन
    • संस्करण : 1972

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY