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शुभागमन

shubhagaman

सियारामशरण गुप्त

अन्य

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और अधिकसियारामशरण गुप्त

    चक्रपाणिता तज, धोने को

    पाप-पंक के परनाले,

    आहा! पहुँचा मोहन तू

    विप्लव की झाड़ू वाले!

    आवर्जन के ढेर हमारे

    इस आँगन में फैले हैं;

    ऊपर से हम स्वच्छ बने जो

    हृदय हमारे मैले हैं।

    हम सारे जग के अछूत जो,

    उच्च कह रहे हैं निज को;

    इस घर के सारे के सारे

    वातावरण विषैले हैं।

    आज झाड़ देगा निश्चय ही

    तू इस जड़ता के जाले;

    पहुँचा तू अहा! अचानक

    विप्लव की झाड़ू वाले!

    खोल सकेगा खट से तू ही

    उर-उर के अवरुद्ध कपाट,

    हमें खड़ा करके चौड़े में

    देगा तू भय-बंधन काट।

    दृष्टि हमें देगा ऐसी तू

    देखेंगे हम विस्मय से—

    क्षुद्र नहीं हैं हम, हममें ही

    है यह तेरे तुल्य विराट।

    क्या चिंता, यदि पिये पड़े हम

    इस बेसुधपन के प्याले,

    पहुँचा तू अहा! अचानक

    विप्लव की झाड़ू वाले!

    मधुर हुआ तेरी वाणी में

    आकर विप्लव का हुंकार;

    जा पहुँचा उर के भीतर वह

    करके कितने ही स्तर पार।

    पड़े पंगु-से थे अब तक जो

    प्रस्तुत हैं चल पड़ने को;

    तू आगे-आगे है पथ के

    काँटों का क्या सोच-विचार?

    नहीं हमें ही, सारे जग को

    तेरी पावनता छा ले;

    पहुँचा तू अहा! अचानक

    विप्लव की झाड़ू वाले!

    निगल रही है इस जगती को

    लौह-यंत्रिणी दानवता;

    पड़ी धूल में है बेचारी

    आज विश्व की मानवता।

    दान अभयता का दे तूने

    उसे उठाया नीचे से,

    फिर से झलक उठी है उसमें

    जागृत जीवन की नवता।

    छिन्न-भिन्न हो उठे शीघ्र ही

    हिंसा के बादल काले,

    पहुँचा तू अहा! अचानक

    विप्लव की झाड़ू वाले!

    तूने हमें बताया-हम सब

    एक पिता की हैं संतान,

    हैं हम सब भाई-भाई ही,

    हैं सबके अधिकार समान।

    नहीं रहेंगे मानव हम यदि

    मानव ही को पीसेंगे;

    सत्य, अहिंसा, निखिल-प्रेम में

    गूँज उठा तेरा जय-गान!

    टूटे तेरे मृदु प्रहार से,

    पड़े बुद्धि पर थे ताले;

    आहा! पहुँचा बापू, तू

    विप्लव की झाड़ू वाले!

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