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माघ-स्नान

magh snan

मिथिलेश कुमार राय

अन्य

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और अधिकमिथिलेश कुमार राय

    अभी सुबह के साढ़े तीन बजे हैं

    और यह माघ का महीना है

    वातावरण में

    सिर पर उड़ेले गए पानी के तेज़ी से नीचे गिरने की आवाज़ें पसर रही हैं

    जिसमें दाँत के किट-किट बोलने का स्वर

    कहीं दब-सा गया है

    जब खाँसी ज़ोर-ज़ोर से होने लगती है

    तब पता चलता है कि कोई देह विद्रोह कर रही है

    लेकिन किसी ने उसे जकड़ रखा है

    पूस के इस सहोदर भाई माघ में

    कभी रात के तीन बजे जगे होंगे

    और जगकर बाहर निकले होंगे

    तो भी पता नहीं चल पाएगा

    कि पुण्य कमाना कितना मुश्किल काम होता है

    सिर के ऊपर बाल्टी उड़ेलने से

    जब कलेजा काँप-काँप उठता है

    बात तब समझ में आती है

    कि इसे अक्षुण्ण रखने के लिए

    कितना ज़िद्दी होना पड़ता है

    और कितना समर्पित

    माघ मास के इस ब्रह्म-वेला में

    जल मुझे किसी क्रूर यातना की तरह लगता है

    लेकिन इसकी कल्पना किसी निरंकुश शासक के मन में नहीं आई होगी

    यह उसने सोचा होगा

    जिसके पास पुण्य के लिए बेकल भोली स्त्रियों की फ़ौज होंगी

    लेकिन वे स्त्रियाँ

    हँसतीं हैं तो खाँसने क्यों लग जाती हैं

    रह-रह कर उनका रोयाँ-रोयाँ

    सिहर-सिहर क्यों उठता है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मिथिलेश कुमार राय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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