Font by Mehr Nastaliq Web

लोकोपकारिता

lokopkarita

तिरुवल्लुवर

अन्य

अन्य

तिरुवल्लुवर

लोकोपकारिता

तिरुवल्लुवर

और अधिकतिरुवल्लुवर

    211

    उपकारी नहिं चाहते, पाना प्रत्युपकार।

    बादल को बदला भला, क्या देता संसार॥

    212

    बहु प्रयत्न से जो जुड़ा, योग्य व्यक्ति के पास।

    लोगों के उपकार हित, है वह सब धन-रास॥

    213

    किया भाव निष्काम से, जनोपकार समान।

    स्वर्ग तथा भू लोक में दुष्कर जान॥

    214

    ज्ञाता शिष्टाचार का, है मनुष्य सप्राण॥

    मृत लोगों में अन्य की, गिनती होती जान॥

    215

    पानी भरा तड़ाग ज्यों, आवे जग का काम।

    महा सुधी की संपदा, है जन-मन-सुख धाम॥

    216

    शिष्ट जनों के पास यदि, आश्रित हो संपत्ति।

    ग्राम-मध्य ज्यों वृक्षवर, पावे फल-संपत्ति॥

    217

    चूके बिन ज्यों वृक्ष का, दवा बने हर अंग।

    त्यों धन हो यदि वह रहे, उपकारी के संग॥

    218

    सामाजिक कर्तव्य का, जिन सज्जन को ज्ञान।

    उपकृति से नहिं चूकते, दारिदवश भी जान॥

    219

    उपकारी को है नहीं, दरिद्रता की सोच।

    ‘मैं कृतकृत्य नहीं हुआ’ उसे यही संकोच॥

    220

    लोकोपकारिता किए, यदि होगा ही नाश।

    अपने को भी बेच कर, क्रय-लायक वह नाश॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : तिरुक्कुरल: भाग 1 - धर्म-कांड
    • रचनाकार : तिरुवल्लुवर

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए