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लौटने की जगह

lautne ki jagah

सोनल

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लौटने की जगह

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    मेरा गाँव है बकानी

    राजस्थान का रहने वाला हूँ मैं

    कहते हुए पिता जुड़ जाते हैं सीधे अपनी जड़ों से

    माँ ने भले बिताएँ हों भलें कुल पंद्रह सोलह बरस

    पर उनका भी एक गाँव है

    जहाँ वे लौटती हैं रोज़/ठेठ स्वादों और शब्दों के जरिए

    मेरे जाने पहचाने लगभग सभी लोगो के पास है

    अपना एक गाँव एक क़स्बा

    जहाँ उनके बचपन के दोस्त

    अब भी करते हैं उनका इंतज़ार

    जहाँ की बोली बोलने लगते हैं वे

    अक्सर बहुत दुःख या ख़ुशी के मौक़ों पर

    वे पहचान सकते हैं वहाँ के

    हर गली मोहल्ले के रास्ते

    और एक सुसंस्कृत कॉलोनी के सामने खड़े होकर

    कह सकते साधिकार

    ‘अरे यहाँ तो जंगल हुआ करता था’

    वे इस ख़्याल से ख़ुश हो जाते हैं

    कि वे लौट सकते हैं/जो उन जगहों पर

    जहाँ ‘वे दिन’ आज भी रहते हैं

    लौट सकें...न सही

    एक जगह तो होनी ही चाहिए

    जहाँ लौटने के बारे में सोचा जा सके!

    स्रोत :
    • रचनाकार : सोनल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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