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लॉकडाउन के बाद से

laukDaun ke baad se

मुकेश कुमार सिन्हा

अन्य

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मुकेश कुमार सिन्हा

लॉकडाउन के बाद से

मुकेश कुमार सिन्हा

और अधिकमुकेश कुमार सिन्हा

    लॉकडाउन के बाद से,

    रहना था सबको आइसोलेशन में

    पर, कर्फ़्यू पास के साथ,

    हम डरे हुए सरकारी कर्मचारी

    'कामचोरी' के तमगे के साथ

    क़रीबन हर दिन पहुँचते है

    ऑफ़िस डेस्क के पास,

    ये तमगा हमें हासिल किए वर्षो हुआ

    बेशक हर दिन मेहनत करते हुए

    लाख दलीलें देकर भी

    छिपा तक नहीं पाए

    ये ख़ास तमगा

    इन दिनों

    ऑफ़िस मेन गेट पर

    थर्मल चेकिंग के दौरान भी

    नहीं रहता हमें चैन

    पूछ ही लेते हैं हर दिन

    कितना है मेरा ताप

    मुसकुराते हुए कहता है सिक्यूरिटी

    अरे, नहीं मरते सरकारी कर्मचारी

    बस जिए जाओ सर

    सेनीटाइजर से भीगी

    थरथराती उँगलियों में थामे क़लम

    कस के बाँधे मास्क के नीचे से

    धौंकनी सी लेते हुए साँस

    बेवजह माउस और की बोर्ड को सेनीटाइज्ड कर

    सरकारी फ़ाइलों के निबटान के साथ

    हर समय जल्दी घर लौटने के फ़िक्र के साथ

    देर तलक बैठकर

    फ़िक्र को थामे, इंतज़ार करते हैं

    हर दिन लिए जाने वाले निर्णयों का

    नहीं कह पाते कि

    हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया!

    बेशक ऑफ़िस तक पहुँच पाने में भी

    होती है कठिनाइयाँ

    पर, हम डरे हुए लोगों को झेलना होता है

    कुछ कुछ, या सब कुछ

    फिर भी तमगा कामचोरी का

    रहेगा बदस्तूर।

    है ज़िंदगी आसान या है कठिन

    ये तो बस कहने की बात है

    याद होगा

    बेशक कुछ सौ रुपए की होती थी मासिक बढ़त

    महँगाई भत्ते के रूप मे

    पर समाचार पत्र

    किसी पार्क मे लेटे हुए कर्मचारी के साथ

    'हज़ारों करोड़ के चपत सरकारी मेहमानों पर'

    शीर्षक के साथ

    करता था हाई लाइट,

    आज महरूम हुए इनसे भी

    क्योंकि देश के साथ दिखना है हमें भी

    वो और बात है कि

    हम विपणन मे थोड़े कच्चे

    हमारी तस्वीरें वायरल नहीं होती

    बस तनख़्वाह ऊपर ऊपर कट जाती है

    अंत सिर्फ़ इतना कह कर ख़त्म करूँगा

    कि बेशक मत मानो

    पर सरकारी तंत्र के हम कर्मचारी भी

    होते हैं मेहनती

    होते हैं संवेदनशील

    और मरते भी हम ही हैं

    देखो न,

    फिर भी नहीं माने जाते हम वारीयर्स

    हम निक्कमे कामचोर सरकारी कर्मचारी!

    ... है न!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मुकेश कुमार सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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