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वरिष्ठ कवियो

warishth kawiyo

कृष्ण कल्पित

अन्य

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कृष्ण कल्पित

वरिष्ठ कवियो

कृष्ण कल्पित

और अधिककृष्ण कल्पित

    वे जो जिनकी कविताएँ दीवारों पर खुद चुकी हैं

    वे जो पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं

    वे जो अन्य भाषाओं में अनूदित हो चुके हैं

    वे जो छात्रों की भाषा ख़राब कर चुके हैं

    वे जो जिनकी प्रतिनिधि कविताएँ कबाड़ी ले जा चुके हैं

    वे जो जिन्हें दफ़नाया जा चुका है अपनी क़ब्रों में

    कितना लहू पिओगे

    कितने युवा कवियों का कलेजा चबाओगे

    वरिष्ठ कवियो,

    जाओ

    सुसज्जित सभागारों में आपकी प्रतीक्षा हो रही है

    फूलमालाएँ मुरझा रही हैं आपके इंतिज़ार में

    वे जो जिनकी भाषा एक अरसे से ठहरी हुई है विचार धुँधलाया हुआ है और कल्पनाशक्ति हर-रोज़ क्षीण हो रही है

    वे जिन्हें रोज़ कच्ची कोंपलें चबाने को चाहिए

    वे जो अपनी ख्याति के दलदल में धँसे हुए क़दमताल कर रहे हैं

    वे जिनकी आँखों से लहू नहीं लालच टपकता रहता है हर घड़ी

    वे जो किसी असंभव प्रेम की आशा में अभी भी लिखे जा रहे हैं प्रेम-कविता

    वरिष्ठ कवियो, थोड़ा हटो

    रास्ता दो युवा कवियों को

    एक जो एक मृत चित्रकार के पैसे से हर साल पेरिस में गर्मियाँ गुज़ारता है

    एक जो अब भूलता जा रहा है कि जीवन में किन-किन स्त्रियों का नमक खाया है

    एक बरसों से अचेत है

    उसे अचेतावस्था में ही किया गया सम्मानित

    एक मुंबई में घायल है

    एक देहरादून के एक होटल में पस्त है

    एक जयपुर में उपेक्षित है

    एक पटना में सम्मानित है

    एक लखनऊ में बाँसुरी बजा रहा है

    एक भोपाल में चित्रकारी कर रहा है

    एक संगीत में डूबा हुआ है एक सिनेमा में

    एक इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में स्कॉच पी रहा है और दूसरा लक्ष्मी नगर में ठर्रा

    आदिवास का एक कवि किसी आदिवासी की हत्या से नहीं

    किसी पेड़ से पत्ते झरने से व्यथित होता है

    एक कवि कथाकारों की बस्ती में फ़रारी काट रहा है

    एक को अभी-अभी निगमबोध घाट पर जला कर रहे हैं

    एक जो किसी रामानंद की लात की प्रतीक्षा में

    मणिकर्णिका घाट की सीढ़ियों पर लेटा हुआ है बरसों से

    एक गठिया से परेशान है एक आधासीसी का शिकार है

    एक को नोबेल का शक पड़ गया है

    एक ग़ालिब की आड़ में जिन्ना की भाषा बोलने लगा है

    एक ने कब लिखी थी कविता उसे याद नहीं

    जिसकी एक भी पंक्ति नहीं बची

    उसके पास सर्वाधिक तमग़े बचे हुए हैं

    वरिष्ठ कवियो,

    जाओ

    अपनी-अपनी क़ब्रों में अपने-अपने तमग़ों के साथ सो जाओ

    अब अधिक धूल मत उड़ाओ

    कृपया जाओ

    खिड़की से धूप आने दो

    और मुझे खींचने दो चिल्ला!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कृष्ण कल्पित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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