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लगना

lagna

मलयज

अन्य

अन्य

मलयज

लगना

मलयज

रोज़ रोज़ हाज़िरी के रजिस्टर पर

दस्तख़त करते डर लगता है

ख़ुद को दीवार के आईने में

इकाई चेहरे को दहाई चेहरों में

एक अलग नाम के साथ चिपकाते

डर लगता है

डायरी पर दिन की तारीख़ डाल

हत्या आगज़नी व्यभिचार की नींद सोते

डर लगता है

घटनाओं की तड़ी खाकर

महसूस करना शरीर से जुड़ी दो बाँहें, दिल, दिमाग़, गुर्दा

लपक कर आततायी गर्दन पकड़ने में

पाँवों की मोच से

डर लगता है

ईमानदारी के सिफ़ारिशी पत्र पर

अपने युग की मोहर लगवा

पाई है मैंने कविता करने की नौकरी

नौकरी की इस ईमानदारी से

डर लगता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : ज़ख़्म पर धूल (पृष्ठ 33)
  • रचनाकार : मलयज
  • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
  • संस्करण : 1971

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