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कुत्ता और दिसंबर की रात

kutta aur december ki raat

अनुराग अनंत

अनुराग अनंत

कुत्ता और दिसंबर की रात

अनुराग अनंत

जीवन में दुर्भाग्य की एक रेखा

बेक़ाबू ट्रक की तरह घुसी

और दुर्घटनाओं का मानचित्र बनाती हुई

उस पेड़ से जा टकराई

जिसकी जड़ों में मेरी माँ के आँचल में बंधे सिक्के गाड़े थे मैंने

मेरी प्रार्थनाओं को गृहस्थ महिलाओं की तरह

ईश्वर के पैर दबाकर सो जाना था

पर वे तवायफ़ों की तरह जागती रहीं

दुनिया ने दिन में बदचलन कहा उन्हें

और रात में शराब पीकर उन्हीं से लिपट गईं

कचरा बीनने वाले बच्चों के हाथों में अगर उभर आए आईना

तो बादशाह का चेहरा बदरंग पड़ जाएगा

ईश्वर की नींद टूट जाएगी

और मेरी प्रार्थनाएँ

मासूम बच्चियों-सी किलकारी मारकर हँसेंगी

बस उसी एक दिन के लिए

एक अधमरी आस्था जिगर से लगाए

इस ठिठुरते समय में जी रहा हूँ

जैसे कोई भिखारी

किसी अधमरे कुत्ते को सीने से लगाए

काटता है दिसंबर की सर्द रात।

स्रोत :
  • रचनाकार : अनुराग अनंत
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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