एक बेर फेर
आइ एक बेर फेर
केबाड़ खोलिकऽ हम ठाढ़ छी चुपचाप
नहि
बाहर केओ नहि अछि कतहुँ
ने मनुक्ख ने चिड़ै चुनमुनी ने हवा-बसात ने तकर गंध
पानि आ पातसँ अलग-थलग ऋतु सभ
अपनहि स्मृतिमे चिहकि रहल अछि
आ रहल-सहल गाछ-वृक्ष
अभिशप्त विधुर जकाँ ठाढ़ अछि निर्वाक
बुझाइत अछि
जे चीज सभक अर्थ
सुखक बिहाड़िसँ विरक्त भऽ कऽ
फेर अपन आदिम रहस्यमे घूरि गेल अछि निःशब्द
आ अइ आँठि धोधरिमे आब
निरर्थकताक जुआरि उठि रहल अछि
कतहुँ बिड़रो जकाँ उठि रहल अछि अट्टहास
कतहुँ रुदन प्रपातक अऽढमे खसि रहल अछि
कतहुँ ओंघड़ायल अछि पाथर सन निस्सन सन्नाटा
आब ककरासँ पूछी जाकऽ
जे अइ सभक बीचमे अछि कोन तरहक सम्बन्ध
नहि जानि
अपनासँ भागबाक कोनो अज्ञात हठ थिक हमर ई
आ कि किनकोसँ भेंट करबाक एक टा आस
कि बेर-बेर केबाड़ खोलिकऽ हम
ठाढ़ भऽ जाइत छी चुपचाप
आ हरसाइत पबै छी
जे मारिते रास अनठेकान लोक सभक जूताक धूरा-गर्दा
कतय जाउ की करू
हमर केबाड़ खोलबाक प्रतीक्षामे अछि अनंत कालसँ ठाढ़
- पुस्तक : एकटा हेरायल दुनिया (पृष्ठ 65)
- रचनाकार : कृष्णमोहन झा
- प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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