महुआ घटवारिन
घाट पुछैत अछि धारसँ
धार पुछैत अछि नाहसँ
नाह पुछैत अछि हवासँ
हवा पुछैत अछि गाछ-पातसँ खर-पतवारसँ
खेत-खरिहानसँ घर-दुआरसँ
जे कतऽ चल गेली महुआ घटवारिन
सुनने रही जे घासमे
महुयेक जीवन सरसरबैत अछि
लबालब धारमे
महुयेक यौवन उधियबैत अछि
महुआ बिहँसैत अछि
तँ मूँग छीमी जकाँ चिहकि कऽ
बदलि जाइत अछि मौसम
हवा रहै ओकर सखी
जकरा संग ओ जाइत रहै खेत-पथार
धार-पोखरि, वन-पर्वत सुदूर नगर आ गाम
ओकर स्पर्श पानिकेँ गुदगुदबैत रहै
जीवनक कोनो खास मर्म सिखबैत रहै...
मुदा आइ महुआ नहि अछि कतहुँ
आ ई एहि दुनियाक व्यर्थ होइत जयबाक
अछि सभसँ सीधा आ सुच्चा प्रमाण
काल्हि खन फेर
अपन पोथी-पत्रा लऽकऽ पुरहित-पंडित
विदा भऽ जायत जैजमानक घर
माल-जालकेँ हँकने चरबाहा सब
धारक ओइ पार चल जायत
मूस आ मुसहनिक खोज करैत मुसहरीक लोकबेद
फेर धनकट्टा खेतमे छिड़िया जायत
मुदा केओ नहि पूछत ककरोसँ
जे कतऽ चल गेली महुआ घटवारिन
की भेलै? कोना भेलै ई सब?
एतबो टा नहि
जे गामक सबसँ बलवंत आदमी
लगले कोना भऽ गेल अछि एतेक धर्म-परायण
- पुस्तक : एकटा हेरायल दुनिया (पृष्ठ 49)
- रचनाकार : कृष्णमोहन झा
- प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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