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कोसों दूर रहकर भी

koson door rahkar bhi

मलय

अन्य

अन्य

मलय

कोसों दूर रहकर भी

मलय

बुझने वाले अंगारों से बना हूँ

पानी नहलाने को

आता है

इसे छानता हूँ

पंख देता हूँ

प्यासी ज़मीन पर

लौटने की दिशा देता हूँ

वह

चिड़ियों की तरह

पंख पसारे

अपने ठंडे मन से

अनाज–दानों-सी बूँदों में

बरसता है

धधकती काया का आदमी

बाँहें पसारकर ख़ूब

दूरियों तक जीता हूँ

इस तरह धरती का हरापन

मेरी उम्र

होना है

अपनी चाहत का

नागरिक

जलते अंगारों में जीता हूँ

स्रोत :
  • रचनाकार : मलय
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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