Font by Mehr Nastaliq Web

किसी को न दे इतना प्यार

kisi ko na de itna pyar

प्रदीप अवस्थी

अन्य

अन्य

प्रदीप अवस्थी

किसी को न दे इतना प्यार

प्रदीप अवस्थी

और अधिकप्रदीप अवस्थी

    इतना कच्चा था मेरा घर

    इतनी झीनी थी मेरी संवेदनाओं की सरहदें

    इतनी कोमल और लहूलुहान

    कि चोटिल होती रहती थीं मेरे भीतर बैठे सज्जनों से

    कोई क्यों रखता उनका ख़याल

    जब अख़बार पटे पड़े हैं हिंसा से

    जब भविष्य की संभावनाओं में कोई ख़ुशी हो सकती थी छुपी हुई

    जब वे सब ढूँढ़ रहे थे सहारा

    जब अपने अच्छा इंसान होने के दंभ में मैं टूट रहा था भीतर

    जब मेरे सामने वे थे संभोगरत

    और मैं चाक़ू का इस्तेमाल करना चाहता था

    अरे इतने अच्छे लोग!

    हे ईश्वर,

    किसी को दे

    किसी को दे इतना प्यार

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप अवस्थी
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए