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किसान

kisan

नीलेश रघुवंशी

अन्य

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कचहरी के चक्कर लगाता

पानी की आस में प्याऊ के लिए दूर-दूर भटकता

मंडी में बोरों से लदी गाड़ी की चौकीदारी करता

बाद भी इसके दो-चार बोरे गेहूँ ग़ायब हो ही जाते हैं

तौल-काँटे पर गिद्ध-सी निगाह लगाए तिस पर दंडी मरती हर बार

चारों ओर खेती-किसानी की बातें

दब जातीं जिसमें उसकी कराह

शोरगुल ऐसा कानफोड़ू कि हाँ बदल जाती ना में

गाँव में लहकता गरजता गाय बछेड़ू को गरियाता

बाखर और अटारी में बमुश्किल खीसे से पैसे निकालता

चमड़ी जाए पर दमड़ी जाए की तर्ज़ पर

और बाज़ार में उलट जाती पूरी जेब

लुटा-पिटा अगली फ़सल की आस में गाँव को लौटता

ये हमारे समय का किसान है,

कि किसान का समय है ये

स्रोत :
  • रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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