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कीलें

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शुभम नेगी

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शुभम नेगी

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शुभम नेगी

और अधिकशुभम नेगी

    मेरी बाईं जाँघ के अंदरूनी हिस्से पर

    कब तक धँसा रहेगा वह अधेड़ हाथ

    जो बस में एक दिन पास सरक आया था?

    सोलह साल की उम्र में ही

    होंठों से लेकर जाँघों तक

    कीलों की तरह ठुकी पड़ी थीं मुझ पर

    कितने बेगाने हाथों की स्मृतियाँ!

    हॉस्टल का वह बेहूदा सीनियर

    जिसकी दिनचर्या का अटूट हिस्सा था

    मेरे होंठों को घोंटना अपने होंठों से

    कैसे फेर पाता होगा अब

    अपने बच्चे के सिर पर सहलाता हाथ?

    मेरे बारह वर्षीय होंठ

    हर शाम काटे जाते रहे

    पर कटी पड़ी रही साथ में ही

    मुझे कटता देखतीं डेढ़-दर्जन ज़ुबानें

    युद्धग्रस्त क्षेत्र है मेरी देह

    कितने ही घुसपैठियों ने किया है यहाँ अतिक्रमण!

    मुझमें ठुकी कीलों को ढकती

    लटकी है एक मुस्कुराती तस्वीर उन पर

    जो कि मेरा बचपन है

    हर धावे के उपरांत

    और ऊँचा चिनता गया मैं

    अपने गिर्द क़िले की दीवारों को

    घुसा था जो बस में जाँघों के अंदर हाथ

    झटका जा सकता था उसे

    खींचकर जड़ा जा सकता था एक तमाचा

    चिल्लाया जा सकता था कंडक्टर को पुकारते हुए

    या मिलाया जा सकता था कोई हेल्पलाइन नंबर

    जिसकी रिंगटोन बरसों बजती रहती

    पर मैं बस उठा और बैठ गया

    उस आदमी से सबसे दूर वाली कुर्सी पर

    हालाँकि थम जाए इस नई कील से रिसता ख़ून

    झटक दे मेरी देह यह बेगाना स्पर्श

    कोई दूरी इतनी लंबी नहीं

    स्रोत :
    • रचनाकार : शुभम नेगी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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