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ख़्वाहिश...

khvahish. . .

श्रीधर करुणानिधि

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श्रीधर करुणानिधि

ख़्वाहिश...

श्रीधर करुणानिधि

और अधिकश्रीधर करुणानिधि

    एक गुलाब का फूल

    एकदम ताज़ा कि सपनों में पहाड़ी नदी का साफ़ चेहरा...

    सपनों का चेहरा मटमैला नहीं साफ़ हो

    पानी बनकर बहते हुए...

    अगर कहूँ कि एक छोटा घर और उसके आस-पास

    धीरे-धीरे घटता नहीं फैलता हुआ जंगल हो

    कि चौखट और चौकी, खिड़कियों के लिए लकड़ियाँ

    उन पेड़ों से नहीं कहीं दूर महोगनी वनों से आए

    जिसे देख सकूँ चीरते-फाड़ते

    सिर्फ़ तख्तियाँ ट्रैक्टर में लद-फद कर आएँ

    इतना भर ही देखूँ

    देखूँ नहीं पेड़ों की लाशें

    अपने हाथों कभी बचपन में रोपी गई पौध की

    इस तरह नहीं कि संग साथ खेलते हँसते बड़े होने पर

    उसको अपने मुर्गे और ख़स्सी की तरह मारकर

    पहना लूँ माले की तरह घर के चौखटे में...

    अपराध कोई शातिर अपराधी नहीं

    ख़्वाहिशें भी करती हैं...

    रोकने के लिए नखरे ख़्वाहिशों के

    सबसे बड़ी ख़्वाहिश यह होगी

    कि घर के आस-पास भी एक आस-पास हो

    पेड़ों के आस-पास भी एक पेड़ों की दुनिया हो

    कि महलों की दुनिया में एक कच्चे घर की कीमत लगाई जाए

    हमारे बिकने को कोई ख़रीदार

    बोली की तरह इस्तेमाल कर के

    किसी अपने को चुपके से बैठा दे

    कि बोलने की बोली ही लग जाए...

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीधर करुणानिधि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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