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ख़ुश्बू का बाग़ीचा

khushbu ka baghicha

अनुवाद : तुषार धवल

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

ख़ुश्बू का बाग़ीचा

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

ज़ैबुन्निसा को भोगने का जो मज़ा था

वो शादी की औरत से नहीं मिल सकता था

कह सकते हैं कि हाँ वह बदचलन औरत थी

लेकिन उसे देखकर सलमा का ख़याल आता था

औरत तुम्हारा खेत है उसे जैसा चाहो जोत लो

ठीक है, पर इस में फ़सल नहीं होती

या अल्ला इस गेहूँ के दाने पर

मेरा भविष्य मिट गया है

ज़ैबुन्निसा पटापट मुझे चूमती थी

पान रंगे मुँह से

और शराब के नशे में मैं

बेशर्म सो जाता उसकी शर्मगाह में

सारा कोठा मुझ पर हँसता था

कहता वाह रे शायर

लगता है इसकी माँ बहन थी ही नहीं

और पता नहीं है इसको प्रेमिका का स्वाद

सभी औरतें बुरखे के भीतर से बुरखे तक

घुट घुट कर मर गयीं और

उनकी क़ब्र की जगह पर बादशाह ने

सात मंज़िला हरम बनवाया।

स्रोत :
  • पुस्तक : मैजिक मुहल्ला खंड दो (पृष्ठ 19)
  • रचनाकार : दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2019

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