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खिलौना

khilauna

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

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और अधिकआकृति विज्ञा 'अर्पण’

    ननदो के छोटका भइया काहें जोहीं

    बड़का भइया काहें जोही हों

    ननदो जोहिले माझिल मोर बलमा 

    कहल मोरा मानि जाले हों।

    मंगली मे नेबुआ खटाई

    इमिली भी लाइ देले हों

    अरे हथवा से हमके खियावेले हाथ गोड़ दबाई देले हो।

    ननदो के अम्मा रानी, काहें जोहीं

    भाभी रानी काहें जोहीं हो

    जोहीं भाभी के देवर जी में

    सासु जी के पूत राम हो...

    कहली में अंगिया चाहीं 

    भर थान लाई देले हों

    अरे हथवा से हमके ओढ़ाई देले

    केसियो संवारि देले हों।

    ननदो के टोलवा हम, काहें घूमी

    काहें घूमी हो

    हम घूमेली बलम संग अटारी कि 

    पूरुबी बयारि चले हो।

    पूरबी रुकत देर लागेस

    बेनवा डोलाई देले हों 

    अरे फूंकि उड़ावे मोर पसेना

    गाल सोहराई देले हो।

    ननदो के भागि हम, थोड़ा अइठीं

    सासु जी के भागि इठीं हो

    उनकर भैया चिरैया पूत छरहर

    बलमुआ सबले ढेर बाड़े हो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकृति विज्ञा 'अर्पण’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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