Font by Mehr Nastaliq Web

खेत रोपाई

khet ropai

अनुवाद : बीना क्षत्रिय

मनप्रसाद सुब्बा

अन्य

अन्य

मनप्रसाद सुब्बा

खेत रोपाई

मनप्रसाद सुब्बा

कीचड़ से सर्वांग लथपथ हो

खेत चित लेटा है।

कीचड़ में हल चलाते हुए

हलवाहा अपना पुरुषार्थ जोत रहा है।

इस आषाढ़ के उन्माद में

खेत अकेला नहीं है।

उसके साथ उसकी रोपाई करने वाली तरुण सहेलियाँ हैं

पानी से ही सिर्फ़ नहीं

पसीने से भी लथपथ हैं वे।

रोपाई की उँगलियों से गुदगुदी लगाते हुए

खेत के कोमल निर्वस्त्र शरीर को

रोमांचित करने की लगातार कोशिश कर रही हैं

वे उत्तेजित होती हुई सहेलियाँ

नहीं, नहीं लेस्बियन नहीं हो सकतीं वे रोपक।

वरना उनके शरीर से

मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू क्यों आती।

हलवाहा भी अकेला नहीं है वहाँ

इन उन्माद के खेल में उसके मित्र

फ्याउरे बाउसे हैं अपने-अपने पौरुष के साथ।

किसी शहरी सभ्यता की अनूठी मस्ती नहीं है यह

पर सृजनक्रीड़ा है इस बस्ती की।

वरना सबकी आँखों में

सुनहरे खेत की पेंटिंग क्यों पोतती!

उन्मत लेटे खेत में

हल जोत रहा है हलवाहा।

तीव्र चाहतों में कुलबुला रहा है सृजन।

(फ्याउरे : लंबी लकड़ी के एक छोर में बंधा अर्धचंद्राकार औजार।

बाउसे : कुदाल की तरह का एक औजार।)

स्रोत :
  • पुस्तक : ऋतु कैनवास पर रेखाएँ (पृष्ठ 55)
  • रचनाकार : मनप्रसाद सुब्बा
  • प्रकाशन : नीरज बुक सेंटर
  • संस्करण : 2013

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY