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कविता के अनुवाद के बारे में

kavita ke anuvad ke bare mein

अनुवाद : केदारनाथ सिंह

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

अन्य

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ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

कविता के अनुवाद के बारे में

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

और अधिकज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

    एक अनाड़ी भौरे की तरह

    वह जाकर बैठ जाता है फूल पर

    कोमल डंठल झुक जाता है

    पंखड़ियों के बीच जो कि होती हैं

    शब्दकोश के पत्रों की तरह

    वह बना लेता है अपना रास्ता

    और पहुँचने की कोशिश करता है वहाँ

    जहाँ छिपी रहती है गंध और मिठास

    और हालाँकि वह खा गया है ठंड

    और उसने खो दी है अपनी स्वाद की चेतना

    लेकिन फिर भी वह उस दुराचार से

    तब तक बाज़ नहीं आता

    जब तक उसका सिर

    पीले पुष्परज से टकरा नहीं जाता

    और यहाँ ख़त्म होता है सारा खेल

    क्योंकि असल में कोई पहुँच ही नहीं सकता

    एक फूल की पंखड़ियों से

    उसकी जड़ों के पास तक

    इसलिए भौंरा निकल आता है बाहर

    दर्प के साथ गुंजार करता हुआ

    कि वह फूल के अंदर से रहा है

    और वे जो उस पर विश्वास नहीं करते

    वह उन्हें दिखाता है अपनी नाक

    जिस पर लगा होता है

    पराग का पीला धब्बा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : अन्तःकरण का आयतन (पृष्ठ 53)
    • संपादक : रेनाता चेकाल्स्का और अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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