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कवि नहीं मरता

kavi nahin marta

संजय शांडिल्य

अन्य

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संजय शांडिल्य

कवि नहीं मरता

संजय शांडिल्य

और अधिकसंजय शांडिल्य

    मरता है व्यक्ति

    कवि नहीं मरता

    देह ख़त्म होने के बाद

    वह कहीं नहीं जाता

    अपने काव्यवृक्ष पर जाकर बैठ जाता है

    और जमा रहता है अनंत तक

    तुम उसे ढूँढ़ते हो

    याद करते हो

    रोते हो उसके लिए

    क्रोध करते हो उसके कृत्य पर

    उसके लिए घृणा के शब्द निकालते हो

    वह चुपचाप बैठा रहता है डाल पर

    तुम्हें देखता रहता है...सुनता रहता है

    तुम पढ़ते हो उसकी कविताएँ

    उन्हें समझने का प्रयास करते हो

    दूसरों के सामने उनका पाठ करते हो

    उन पर बातचीत करते हो

    लिखते हो उन पर

    वह फिर देखता है तुम्हारी ओर

    मुस्कुराता है तुम्हारी समझ पर

    हँसता है तुम्हारे पाठ पर

    तुम्हारी बात को कभी स्वीकार करता है

    कभी साफ़ अस्वीकार कर देता है

    उसकी आँखें एकदम से चमक उठती हैं

    जब नया सौंदर्य तुम ढूँढ़ लेते हो उसके काव्य में

    वह तुरंत नतमस्तक हो जाता है

    आनंद में आँखें बंद कर लेता है...

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय शांडिल्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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