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कौन वीर...

kaun weer

अनुवाद : वै. वेंकटरमण राव

कुंदुर्ति आंजनेयलू

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और अधिककुंदुर्ति आंजनेयलू

    एक पुकार सुनाई दी मुझे

    उत्तरी सरहदों से

    किसी ने हृदय में छुरी चुभो दी

    न्याय अरु स्नेह का विसर्जन कर

    अनुमान लगाने का अवसर नहीं

    उत्प्रेक्षोपमानों का

    ख़तरे में हैं अपने

    जनों के धन, प्राण अरु मान

    सुनो! सुनो!

    हिमवन्नग पार्श्वभूमियाँ

    उच्च स्वर में बुला रही हैं

    एक पुकार सुनाई दी मुझे

    उत्तरी सरहदों से

    वीर

    जो दिग्-दिगंतों यश प्रसारापेक्षी हैं,

    जो मातृभूमि रक्षा व्रतधारी हैं,

    जो देश की विपत्तियों को सर लेने वाले कारण जन्मा है,

    जो जाति के धर्म-युद्ध-विहित-वीर-पथगामी हैं,

    जो अंतिम विजयाकांक्षी देववाहिनी भगीरथ हैं,

    आओ! आओ! मुहूर्त आसन्न है

    मातृ देवी आज विपन्ना है

    वीर होकर मरेंगे

    या

    भीरु बनकर सड़ेंगे

    यही अंतिम समर है

    आओ! हे देश भक्त! विविध प्रजा-शक्तियाँ, आओ!

    हे वीर! क़दम बढ़ाकर आओ! करेंगे या मरेंगे

    यह देश हमारा है

    हिमालय हमारा है

    घर-घर में उफनती

    चेतना जीवनस्रवंती

    जिस किसी ने हिमालय पार किया,

    भेज देंगे उसे यमालय

    आओ! हे देश भक्त! विविध प्रजा-शक्तियाँ, आओ!

    हे वीर क़दम बढ़ाकर आओ! करेंगे या मरेंगे

    माता का खेद अमित

    हृदय हुआ घायल है

    अर्जित स्वतंत्रता

    ख़तरे में आज है

    न्याय विवक्षा-रहित आयुध शक्ति अधिक है

    अथवा

    ऋषि-निलय की सहज शांति रेखाओं का बल

    संसार को दिखा देंगे

    आत्मरक्षा के शस्त्र

    घुसे शत्रु हृदयों में

    चुभो कर ख़तम करेंगे

    आओ! हे देश भक्त! विविध प्रजा-शक्तियाँ, आओ!

    हे वीर! क़दम बढ़ाकर आओ! करेंगे या मरेंगे

    लो यही मेरा शरीर

    लो यही मेरा संकल्प

    लो यही मेरे आभूषण

    लो ख़रीद अस्त्र-शस्त्र

    यह देश हमारा है

    हिमालय हमारा है

    घर-घर में उफनती यही

    चेतना जीवनस्रवंती

    हज़ारों फुट की ऊँचाइयों से

    शीत नगांचलों में

    लड़ते जवान निरंतर

    उनको हमारे शत-शत प्रणाम!

    अकेली है क्या हमारी सेना?

    नहीं है हम क्या पीछे?

    धोखेबाज़ शत्रु चीन को

    ढकेल देने की कसम खाई है

    मातृभूमि पर प्रेम अपार

    दर्शाने का समय यही

    आज़ादी की हक़दारी

    जताने का समय अभी

    यह देश हमारा है

    हिमालय हमारा है

    घर-घर में उफनती यही

    चेतना जीवनस्रवंती

    दूध देकर पाला था,

    साँप बनकर काटा है

    जाति आज जग गई है,

    जैत्र यात्रा पर निकलेंगे

    आओ! हे देश भक्त! विविध प्रजा-शक्तियाँ, आओ!

    हे वीर! क़दम बढ़ाकर आओ! करेंगे या मरेंगे

    वीर

    जो दिग्-दिगंतों तक यश प्रसारापेक्षी हैं,

    जो मातृभूमि रक्षा-व्रतधारी हैं,

    जो देश की विपत्तियों को सर लेने वाले कारण-जन्मा हैं,

    जो जाति के धर्म-युद्ध-विहित-वीर-पथगामी हैं,

    जो अंतिम विजयाकांक्षी देव-वाहिनी भगीरथ हैं

    आओ! हे देश भक्त! विविध प्रजा-शक्तियाँ, आओ!

    हे वीर! क़दम बढ़ाकर आओ! करेंगे या मरेंगे

    करेंगे या मरेंगे

    करेंगे या मरेंगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 65)
    • संपादक : माधवराव
    • रचनाकार : कुंदुर्ति आंजनेयलू
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985

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