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कबूतर की बीट

kabutar ki beet

कृष्ण कल्पित

अन्य

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कृष्ण कल्पित

कबूतर की बीट

कृष्ण कल्पित

और अधिककृष्ण कल्पित

    जितने भी राष्ट्रपति थे सब विद्वान थे

    सारे प्रधानमंत्री कवि

    उपराष्ट्रपति भी शेरवानी पहनकर दार्शनिक या शाइर दिखाई देते थे

    और मंत्रीगण और सांसद संसद में ऐसे घुसते थे जैसे किसी मुशाइरे में शिरक़त करने जा रहे हों

    भारतीय प्रशासनिक सेवा के जितने भी अधिकारी थे वे बाक़ायदा प्रकाशित किताबों के कवि थे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अधिकतर कथाकार थे और भारतीय विदेश सेवा का एक पूर्व अधिकारी ख़राब कवियों का पवनगति से अनुवाद करता था और इस अनुवादक के लिए ग़ालिब गुलज़ार अटल बिहारी वाजपेयी और नीतीश कुमार की कविताओं में कोई फ़र्क़ नहीं था

    यह वह समय था जब हत्यारों को भी कविता का चस्का लग चुका था और देश के सारे बिल्डरों के यहाँ हर शाम स्कॉच-सिंचित काव्य-गोष्ठियाँ होना अनिवार्य था

    मैं जिस सिटी-बस में बैठकर यहाँ आया उसके ड्राइवर और कंडक्टर दोनों कवि थे और बस की सारी सवारियाँ अपना-अपना काव्य-संग्रह पढ़ रही थीं

    मोची भी कवि था जिससे मैंने जूते सिलवाए

    और सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि कवि भी यहाँ पर कवि थे लेकिन मैं किसी एक ऐसे मनुष्य से मिलना चाहता हूँ जो कवि हो

    अगर देश के सारे कविता-संग्रह जलाए जाएँ तो दो-चार साल तक आग बुझे

    मैं चाहे कबूतर की सूखी हुई बीट हूँ

    पर कवि नहीं हूँ!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कृष्ण कल्पित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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