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कबाड़ख़ाना

kabaDkhana

सत्येंद्र कुमार

अन्य

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सत्येंद्र कुमार

कबाड़ख़ाना

सत्येंद्र कुमार

और अधिकसत्येंद्र कुमार

    कबाड़ख़ाने में टँगी

    बेरंग लालटेन में

    गौरेए ने अपना घोंसला बनाया है

    वह उस प्रदेश से लाई है तिनके

    जहाँ हरेपन का गीत गाया जाता है

    वह उन सूखी धरती की दरारों के बीच से

    ले आई है प्यास का एहसास

    और पानी का सपना

    हलों के बीच बचे कुछ दाने को ले आई है अपने साथ

    जो बजते हैं फ़सलों के संगीत की तरह

    इन्हीं टूटी-फूटी, बिखरी

    दुनिया में रचेगी वह नया जीवन।

    यह कितना सुकून देता है

    जब हमें लगने लगता है

    कबाड़ में पड़ी बेकार चीज़ों ने

    खो दी है अपनी सार्थकता

    कि तभी कोई घूमता आता है

    ले जाता है कबाड़ में पड़ी

    बेकार घोषित कर दी गई चीज़ें।

    कभी जब हमें लगने लगता है

    कि हमारे सपने, संघर्ष, विचार

    सब के सब

    बहुत पुराने पड़ते जा रहे हैं

    खोते जा रहे हैं अपनी सार्थकता

    सब कुछ कबाड़ में खोई वस्तु

    बनती जा रही है

    तभी आती है कोई चिड़िया

    लालटेन के भीतर बनाती है घोंसला

    आती है कोई जमात

    और उठाकर ले जाती है

    अपने-अपने हिस्से की चीज़ें

    जो खोती जा रही थीं अपनी सार्थकता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हे गार्गी (पृष्ठ 117)
    • रचनाकार : सत्येंद्र कुमार
    • प्रकाशन : रश्मि प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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