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जितना संभव था

jitna sambhaw tha

निखिल आनंद गिरि

अन्य

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निखिल आनंद गिरि

जितना संभव था

निखिल आनंद गिरि

और अधिकनिखिल आनंद गिरि

    जितना संभव था

    बचाया जाना चाहिए था

    जीने के लिए साँसें

    प्रेम के लिए मौन

    जगमग रातों के लिए अँधेरे

    मौन अपराधों के लिए क्षमा

    शोर में बचाई जानी थी

    एंबुलेंस के सायरन की आवाज़

    ब्रह्मांड में रोने की आवाज़

    शहर के लिए हरियाली

    और कम से कम एक थाली

    या निवाला भर ही

    चिड़ियों के लिए

    बचाने को बचाई जा सकती थीं सब स्मृतियाँ

    कम से कम कुछ इमारतें ही

    जिन्हें बुलडोज़रों के आगे घुटने टेकने पड़े

    सड़क पर पैदल चलने की जगह

    बूढ़ी महिला के लिए हर डिब्बे में एक सीट

    भीड़ में थोड़ी विनम्रता

    हरे-भरे पार्क शहरों में

    जहाँ पढ़े जा सकें असंख्य प्रेम-गीत

    वर्णमाला के कुछ अक्षर भी बचाए जाने थे

    कम से कम हलंत या विसर्ग ही

    हाशिए बचाए जाने थे काग़ज़ों पर

    जितना संभव था काग़ज़ भी

    बहुत अधिक व्यस्त या क्रूर समय में से

    थोड़ा-सा समय

    निर्दोष बच्चों के लिए

    या इतना तो बचाया ही जा सकता था समय

    कि बचा पाना सोचते उतना

    जितना संभव था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निखिल आनंद गिरि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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