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जिसे तुम वैश्या कहते हो न

jise tum vaishya kahte ho na

रेखा राजवंशी

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रेखा राजवंशी

जिसे तुम वैश्या कहते हो न

रेखा राजवंशी

और अधिकरेखा राजवंशी

    वो जो औरत

    जिसे तुम वैश्या

    कहते हो

    दिन के उजाले में

    जिससे दूर भागते हो

    और रात को

    जिसके साथ जागते हो

    जिस बदनाम बस्ती में

    चेहरे ढँक के जाते हो

    जिस औरत के साथ

    रंगरेलियाँ मनाते हो

    और बचाते हो

    अपनी पत्नी को

    जिसकी छाया भर से।

    रोकते हो

    अपने बेटे को

    उन गलियों की

    तरफ़ देखने से।

    वो वैश्या

    जिसके पास तुम जाते हो

    वो तलाशने

    जो तुम्हें घर पर

    नहीं मिलता

    क्योंकि तुम्हारी

    अधेड़ पत्नी

    की सेक्स की इच्छा

    अब चुक गई है

    और तुम्हारी सेक्स लाइफ़

    अब रुक गई है

    और तुम पुरुष हो

    चाहे कितने

    बूढ़े हो जाओ

    संभोग की इच्छा

    समाप्त नहीं होती

    तो अपनी हवस मिटाने

    वैश्या के पास जाते हो

    और वो समदर्शी है

    उसका काम है

    तुम्हारा स्वागत करना

    तुम्हारी भूख मिटाना

    तुम्हें संतुष्ट करना

    वो नहीं देखती

    कि तुम मोटे हो या पतले

    लंबे हो या नाटे

    काले हो या गोरे

    वो इस आधार पर भी

    निर्णय नहीं लेती

    कि तुम

    कितने थुलथुले हो

    या कितने बूढ़े हो

    क्या माप है

    तुम्हारे लिंग का

    कुछ स्पंदन भी है

    या नहीं

    कुछ कर पाते हो

    या नहीं

    कि करने से पहले ही

    स्खलित हो जाती है

    तुम्हारी उत्तेजना

    और तुम

    काम निबटाकर

    जब वापस जाते हो

    तो उसे कुलटा

    कुलच्छनी बताते हो

    वो जो औरत

    जिसे तुम वैश्या

    कहते हो

    उसे अपना नहीं

    तुम्हारा ख़्याल है

    उसका तुमसे कोई

    शिकवा है, सवाल है

    स्रोत :
    • रचनाकार : रेखा राजवंशी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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