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जिस नक्षत्र की प्रतीक्षा में

jis nakshatr ki pratiksha mein

शेषेन्द्र शर्मा

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शेषेन्द्र शर्मा

जिस नक्षत्र की प्रतीक्षा में

शेषेन्द्र शर्मा

और अधिकशेषेन्द्र शर्मा

    जिस नक्षत्र की प्रतीक्षा में मैंने गाए

    अपने समस्त गीत

    वह कभी उदित ही नहीं हुआ

    इस देश के क्षितिज पर

    लेकिन उड़ गई मेरी उम्र तो

    एक पंछी की तरह

    ढलते हुए आकाश में।

    वह ऐसे क्यों मर रहा है

    क्या तुम जानते हो

    उन जंगलों में इतने घावों के साथ

    वह क्यों मर रहा है

    क्योंकि

    वह संतुष्ट नहीं है दी गई आयु से

    वह चाहता है सौ साल के बजाय हज़ार साल की आयु

    औषधियों से प्राप्त नहीं होता अमरत्व

    वह प्राप्त होता है मृत्यु से ही

    एक देश की सम्पदा

    तो नदी है खनिज और अरण्य

    किंतु स्वप्नों के खनिजों से निर्मित वह युवा ही है

    देश की सम्पत्ति

    और है हमारे देश के भविष्य का खेवनहार

    बसों पर पथराव करता, दीवारों को रँगता

    और चीखता हुआ वह युवक

    हमारी परेशानियों के जंगलों को काटने वाला आरा है

    और उषा, दिनोदय के पूर्व आकाश में विस्फोटित

    एक भूकम्प!

    बेटे! तुमने फेंका जिस रूमाल को

    अब वह उड़ रहा है पक्षियों के संग आकाश में

    वे देवता, जो बसे हुए हैं इंद्र-धनुष के किनारों पर

    बरसा रहे हैं आशीष तुम्हारे स्वप्नों पर!

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द इस शताब्दी का (पृष्ठ 83)
    • रचनाकार : कवि के साथ भीम सेन 'निर्मल', ओम प्रकाश निर्मल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1991

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