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जिस कुएँ में पानी

jis kuen mein pani

अनुवाद : वर्षादास

चंद्रकांत शेठ

अन्य

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चंद्रकांत शेठ

जिस कुएँ में पानी

चंद्रकांत शेठ

और अधिकचंद्रकांत शेठ

    जिस कुएँ में पानी

    उसे कैसे कहें ख़ाली?

    मानो कि मैं सच्चाई की ऐसी-तैसी कर दूँ,

    लेकिन आँखों की भी तो आबरू होती है न?

    मैंने हाथी को ठीक से देखा सूँड़ से पूँछ तक।

    मैं यदि उसे स्तंभ जैसा कह सकूँ,

    तो रस्सी जैसा भी कह सकूँ।

    लेकिन हाथी थोड़े ही जमा है

    स्तंभ और रस्सी का?

    हाथी को पाने के लिए

    उसे भीतर की सूई के छेद से

    ठीक तरह से पार करना पड़ेगा।

    और तब तक हमें मौन रहना पड़ेगा।

    वैसे तो इस अँधेर नगरी में

    तो मौन की कीमत चुकानी पड़ेगी!

    किसी दिन सतह के दर्शन से ही

    सूली का सुख भी मिल जाता है...

    और इतने में

    शायद अगर चौपट राजा को अक्ल जाए

    तो...

    कुआँ शायद लाशों से भरने से बच जाए!

    और

    आँखों की आबरू रह जाए अटल

    इस अँधेर नगरी में

    सब आधारित है चौपट पर।

    एकमात्र चौपट की चौपटता पर!

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक गुजराती कविताएँ (पृष्ठ 33)
    • संपादक : वर्षा दास
    • रचनाकार : चंद्रकांत शेठ
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2020

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