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जेक मेरे भाई

jek mere bhai

रविंद्र कुमार

अन्य

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रविंद्र कुमार

जेक मेरे भाई

रविंद्र कुमार

और अधिकरविंद्र कुमार

    जेक मेरे भाई

    तुम्हें जब भी मैं याद करता हूँ

    तालाब के बरगद की याद आती है

    अपनी घनी छाँव से वह शीतलता देता

    अनजान राहगीरों को, पशुओं को

    अनगिनत पक्षियों का बसेरा था जिसकी शाखाओं पर

    मैं उस बरगद के नीचे से हर रोज़ गुज़रता

    यूरिया के कट्टे से बने थैले में किताबें लिए

    जोहड़ वाले स्कूल की ओर।

    जोहड़, बरगद, और वह स्कूल, मेरे बचपन के साथी थे

    छूटा स्कूल, जोहड़, गाँव, देश

    सात समुंदर पार, इस अजनबी देश में

    जहाँ जोहड़ था, बरगद का पेड़।

    पर एक दिन, अचानक तुम मिले

    एक बरगद जैसे बलिष्ठ, घने और पक्षियों की चहचहाहट-सी हँसी वाले।

    तुम भी तो आए थे अफ्रीका के किसी छोटे से गाँव से

    अपना जोहड़, अपना गाँव छोड़कर, इस अजनबी देश में।

    इसलिए, हम दो अजनबियों का इस अजनबी देश में दोस्त बन जाना,

    कोई आश्चर्य की बात नहीं थी

    मैं तुम्हें अक्सर यहाँ काम करते देखता था

    सफ़ाई करते, बोझ ढोते, श्रम करते हुए।

    तुम मुझे देखकर मुस्कुराते, मेरा नाम लेते, गले लगाते,

    बाद में मिलने का वादा करते, और फिर काम में लग जाते।

    मैं भी मुस्कुराता हुआ अपने काम पर चला जाता

    फिर अचानक ख़बर मिली, तुम नहीं रहे

    तुम्हारी मृत्यु हो गई।

    किसी ने नहीं बताया क्यों, कब, कैसे

    पर मुझे पता है, क्या हुआ था

    ठीक वैसे ही,

    जैसे मुझे पता है, गाँव के जोहड़ वाले बरगद के साथ क्या हुआ था।

    एक दिन वह भी ज़मीन पर गिरा मिला था

    पक्षियों के कई बसेरे उजड़ गए थे

    छाँव का आसमान सूना हो गया था

    धरती में एक गहरा सूराख़ हो गया था

    मगर बरगद पर कुल्हाड़ी, आरी और काटने के निशान थे।

    अब वह बरगद है, तुम हो,

    पर मेरी यादों में, वह बरगद और तुम दोनों जीवित हो।

    जेक मैं तुम्हें याद करता हूँ मेरे भाई और हवा में बड़ के पेड़ की जड़ें उग आती हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : रविंद्र कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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