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जपा कुसुम संकाशं

japa kusum sankashan

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

प्रतिभा शतपथी

अन्य

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प्रतिभा शतपथी

जपा कुसुम संकाशं

प्रतिभा शतपथी

और अधिकप्रतिभा शतपथी

    तुम्हारे उस पार के विस्तार में

    क्या पानी के बुलबुले होते हैं?

    होता है किसी का अस्तित्व?

    सुनाई देते हैं गीत?

    छप्पन करोड़ जीव में?

    तुम किसी को याद रखते हो सूर्य?

    बिन देखे देखने में अभ्यस्त मैं

    आसन्न गोधुलि में ताक रही होती हूँ तुम्हें

    तुम्हारी पीठ पर पड़े हैं क्या ख़ून के छींटे?

    मेरे आर्त्तनाद, मेरे उल्लास की कोई फ़िक्र नहीं तुम्हें

    तो फिर क्यों सजा रखा है मेरे लिए बग़ीचा

    चित्र-विचित्र पृथ्वी का मानचित्र।

    तुम्हारे देखते-देखते सूख गयी नदी

    जल गया जंगल

    कभी रत्न में तो कभी युवती के गाल में

    बीचोंबीच झलक जाता है तुम्हारा चेहरा,

    छायापथों की ओर क्या तुम कभी

    तिरछी नज़र से देखते हो

    मुस्कुराते हो।

    मुझे लगता है

    मेरे भीतर तुम्हारा अंश चमचमाता है,

    झूठा-क्षणिक उसे तुम कह सकते हो,

    फूल में, इंद्रधनुष में

    तुम्हीं तो रंग भरा करते हो

    इनमें भला कौन क्षणिक नहीं,

    कौन झूठा नहीं?

    तुम्हीं ने तो भिनसारे में

    पुकारा था उस दिन

    झट उठकर बेतहाशा भागते समय

    तुमने कहा—पास मत आना मेरे

    तुम तो बस एक रंग हो अर्बुद-अर्बुद इकाई के।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुम्हारे लिए हर बार (पृष्ठ 15)
    • रचनाकार : प्रतिभा शतपथी
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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