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जनता हाथ मसल रही

janta haath masal rahi

कलानाथ मिश्र

अन्य

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कलानाथ मिश्र

जनता हाथ मसल रही

कलानाथ मिश्र

और अधिककलानाथ मिश्र

    प्रजातंत्र के साए में

    यह अब नित हो रहा है

    जनता हाथ मसल रही

    नेता सिंहासन सो रहा है।

    विचारशील हैं घर में दुबके

    बड़बोले जननायक बनते

    संसद की भाषा बदल गई 

    अप भाषण का दौड़ चला है।

    हतप्रभ जनता निहार रही

    संविधान के नव नायक को

    हाट बना विधान सभा

    संसद मछली बाज़ार बना है।

    निहित स्वार्थ से प्रेरित होकर

    आरोप की कुर्सी उछल रही

    बहस का मतलब तू-तू, मैं-मैं

    प्रत्यारोपों का शोर मचा है।

    गंभीर राष्ट्र के मसलों पर 

    इनका विवेक भ्रमित हो जाता

    आधी कुर्सी खाली दिखती

    आधा संसद सो रहा है।

    जनता से कर चूस-चूस कर

    जन प्रतिनिधि की सुविधा बढ़ती

    कानून विवष लाचार खड़ी है,

    अंग रक्षकों का होड़ लगा है।

    यह गति देख प्रजातंत्र की

    जनता जनपथ लाचार खड़ी है,

    आज़ादी के मस्तानों का मन

    फूट-फूट कर रो रहा है।

    इनकी विलासिता से घबराकर

    ईन्द्र का आसन डोल रहा है

    जनता हाथ मसल रही

    नेता सिंहासन सो रहा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कलानाथ मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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