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जाने पूर्व जन्म में

jane poorv janm mein

चंचला पाठक

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चंचला पाठक

जाने पूर्व जन्म में

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    जाने पूर्व जन्म में

    किस योनि में था धान

    ब्रह्माँड के जाने किस काल खंड में

    था क्या वह माटी की कल्पना में

    बादलों को टोह थी क्या उसकी

    हवा के ऊनचासों ग्राम में महकती थी क्या धान की चरी

    नदियाँ बहती हुई छूना चाहती थीं क्या उसे

    किस गृहिणी ने दिया था वात्सल्य

    बीहंन बीज धरते हुए, कोमलता से छूकर

    निहारा था क्या उसे भविष्य की सुकामनाओं की तरह

    थालियों ने की होगी क्या झन-झन की ध्वनि

    सोहर उठा था क्या भात की भाप से

    कौर बाँध खिलाती माँ ने जीभर कर देखा था क्या

    संतान की तृप्ति को

    उसके नेत्रों में सजल नेत्र जोड़

    अवाक् का संगीत उतरा था क्या

    वाणी के चारों चरणों में

    धान आकुल-सा अँखुआ रहा

    क्षार मले अपनी देह पर

    कोई ग्रामीण मध्यमा में कुशा बाँध

    उठा रहा धान की चरी

    आर्द्रा ने खोल दिए हैं पट

    घटाएँ सजल नयन देख रहीं भूमंडल की ओर

    नदियाँ कोर-कछार तोड़ती

    दौड़ती पछाड़ती चली रहीं

    नहीं चीन्हतीं

    नहर ग्राम खेत मार्ग भुवन-भवन...

    धरती की कोख में ऊष्मित है धान

    और अवाक्

    वाक् के तीनों चरणों में

    मेरे रोमकूपों से फूट रही सहस्रों नदियाँ

    स्मृतियों के विशाल भुवन विस्तार पर

    सिरज रहीं असंख्य धान्य बीज

    धरती के कोशों में संपुट है जो सुगंध

    धान की यात्रा का संबोधि है प्रियंक!

    #धानदेस के मल्हार

    स्रोत :
    • रचनाकार : चंचला पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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