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जाने कब से

jane kab se

राहुल द्विवेदी

राहुल द्विवेदी

जाने कब से

राहुल द्विवेदी

आँखों के किसी कोने में

जो आँसू दुबका हुआ था

जाने कब से

आज ढुलक गया ख़ुद-ब-ख़ुद

कोई इतनी शिद्दत से भी

याद कर सकता है क्या?

दिल के किसी कोने में

जो छुपा हुआ दर्द था

जाने कब से

आज एक बहाने से

उभर ही आया यकायक

कोई इस तरह भी दर्द दे सकता है क्या?

सँभालकर रखे थे जिन यादों को

दफ़न कर सीने में कहीं गहरे

जाने कब से

आज अपने क़ब्र से निकल

सामने खड़ा हुआ

कोई इस तरह भी

ज़िंदगी में सकता है क्या?

उन पन्नो को कि जिन्हें

दबा ही दिया था कहीं वक्त में पीछे जाकर

जाने कब से

आज हवा के एक मामूली झोंके में ही

उड़ गए आसमान की तरफ़

कोई ऐसे भी हमको उड़ा सकता है क्या?

स्रोत :
  • पुस्तक : मै, तुम और ईश्वर (पृष्ठ 65)
  • रचनाकार : राहुल द्विवेदी
  • प्रकाशन : आपस पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
  • संस्करण : 2022

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