Font by Mehr Nastaliq Web

जब मुझे असभ्य हो जाना चाहिए था

jab mujhe asabhya ho jana chahiye tha

प्रदीप अवस्थी

अन्य

अन्य

प्रदीप अवस्थी

जब मुझे असभ्य हो जाना चाहिए था

प्रदीप अवस्थी

और अधिकप्रदीप अवस्थी

    ऐसा कहा जाता था

    कि बर्दाश्त की भी हद होती है

    मैंने इस विचार को कई बार शिकस्त दी

    मैंने प्यार किया इतना

    कि आत्महत्या शीर्षक से

    एक कहानी लिखकर रखी अपने पास

    जब भी ज़्यादा दुखी दिमाग़ की एक नस

    उस कहानी में जाकर साँसें लीं

    जब धैर्य इतना कम था मुझमें

    कि ठीक से सेंक नहीं पाता था दो ब्रेड

    कि करारी हो जाएँ

    जला देता था

    ऐसे में रोक दिया गया मुझे

    प्यार करने से

    कुछ क़रीबी लोगों से

    मैं बोल-बोलकर थक गया

    कि कुछ चीज़ें हैं

    जिनसे मुझे तकलीफ़ होती है

    और जिन्हें करते रहने से

    उन्हें भी कोई लाभ नहीं

    लेकिन उन्होंने तवज्जोह नहीं दी

    बहुत सारे ऐसे मौक़े आए

    जब मुझे असभ्य हो जाना चाहिए था

    बोलने के सारे सभ्य तरीक़े

    मेरे पास ख़त्म हो चुके थे

    इसलिए मैंने चुप्पी साध ली

    फिर यह चुप्पी भी साली मुझे सालने लगी

    शालीन लोगों की यह शालीन दुनिया

    अश्लील नियमों से चलती थी

    मैं ही जानता था

    कितनी तड़प थी मेरे अंदर

    शालीनताओं के इस खेल से बाहर आने की

    और कितनी थी सहानुभूति हत्यारों के प्रति।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप अवस्थी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए