जानना

jaanana

सुंदर चंद ठाकुर

जानना एक लंबी प्रक्रिया है

पूरी उम्र साथ रहकर भी

हम ख़ुद को ही नहीं जान पाते ठीक से

स्थितियाँ और घटनाएँ जानती हैं हमें बेहतर

जो हमसे हमेशा अपने मुताबिक़ काम करवा ले जाती हैं

एक इनसान कितनी बातें जान सकता है

कितनी चीज़ों और कितने लोगों को

इसलिए वह जानने का अभिनय करता है

कई बार वह नहीं जानने का भी अभिनय करता है

जानते हुए कि वह जानता है सब कुछ

जानना एक तकलीफ़ से भरी हुई प्रक्रिया है

उसमें बुरी चीज़ें भी शामिल होती हैं

ख़ुद को जानना अपने दुर्गुणों को जानना भी है

अपने स्वार्थों और चालाकियों को भी

मैं अपनी माँ को माँ की तरह जानता हूँ

उस तरह नहीं जिस तरह मेरी पत्नी जानती है उसे

एक पारंपरिक सास और एक मुश्किल औरत की तरह

एक अनंत प्रक्रिया है जानना

आदि से अंत और उसके पार अनंत तक पहुँचती

पूर्वजों का जाना हुआ अब हमारा जाना हुआ है

हमारा जाना हुआ अगली पीढ़ियाँ जान ही जाएँगी

एक आदमी को एक साल में

एक साल जितना ही जान सकते हैं हम

एक झलक में एक झलक जितना

माता-पिताओं को अपनी उम्र जितना जानते हैं हम

बच्चों को उनकी उम्र जितना

मैं पहाड़ों को जन्म से जानता हूँ

अपने पिता की तरह

मैं पेड़ों को अपनी माँ की तरह जानता हूँ

उन्होंने कभी दग़ा नहीं दिया, कहीं छोड़कर नहीं गए वे

उनकी छाया ने हमेशा मेरा इंतज़ार किया

जबकि बहुत कुछ अनजाना है चारों ओर

मैं थोड़ा-थोड़ा जानता हूँ रोज़

शहर को थोड़ा और

रास्तों को थोड़ा और

दोस्तों को थोड़ा और

पहले से जाने हुए को भी

थोड़ा और!

स्रोत :
  • रचनाकार : सुंदर चंद ठाकुर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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