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इस शख़्स को समझाइए

is shakhs ko samjhaye

जसवंत दीद

अन्य

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जसवंत दीद

इस शख़्स को समझाइए

जसवंत दीद

ये कौन है इन कविताओं में

जो अपने साँसों की रस्सियों में उलझा

अँधेरी मिट्टी नोच रहा

रहा मेरी तरफ़

खड़ा होना चाहता

पैर नहीं टिकता,

गर्दन नहीं घूमती

कहता है—नाख़ूनों में ख़ून टेढ़ा दौड़ता है

लहू में धरती के नीचे से

एक खुर ढूँढ लाया है

एक सफ़ेद रंग का घोड़ा उसके भीतर नाच रहा

सपने में कविताएँ लिए

आग में लेटने लगता है

कोई ऋषि-मुनि उसका हाथ पकड़

जंगल में अकेला छोड़ जाता है उसे

वहाँ एक परी

चुड़ैल बनकर उससे चिपक जाती है

वो चीखता हुआ सपने से जागता है

साथ पड़ी उसकी बीवी

उसकी इस आदत की वजह से उसे डाँटती है

डाँट खाकर

अँधेरे में कविता वाला बंदा

आँखें फाड़-फाड़ कर झाँकता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : कमंडल (पृष्ठ 56)
  • रचनाकार : मूल एवं हिंदी अनुवाद जसवंत दीद
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2016

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