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इस पूरी संरचना से बाहर

is puri sanrachna se bahar

गिरिराज किराडू

गिरिराज किराडू

इस पूरी संरचना से बाहर

गिरिराज किराडू

 

हमने उन्हें आकाश में ठीक हमारे सिर पर मँडराते देखा था।
जैसे पृथ्वी पर घूमने वाला नेपाली महीने में एक बार दस रुपए लेने आता है
वैसे ही ये आकाशीय चौकीदार भी कभी चौकीदारी लेने आएँगे ऐसा सोचकर
अनजाने ही हम उनकी राह देखने लगेंगे और उनकी राह देखते हुए उन्हीं
पक्षियों के हाथों पकड़ लिए जाएँगे यह हमें मालूम नहीं था।

जिन्हें हमने ठीक अपने सिर पर मँडराते देखा था वे कोई पैराशूट खोलकर नीचे
गिरते हुए उन्हीं घोंसलों से टकराएँगे ऐसा सोचकर हम हवा में ताबड़तोड़ हो
रही फ़ायरिंग के नीचे से होकर पृथ्वी पर गिर रहे एक रूपक और पृथ्वी के
बीच अपनी हथेली ऐसे रख देंगे जैसे सुबह और शाम के बीच एक दोपहर
यह हमें मालूम नहीं था।

प्रेम खुले में बनाया हुआ घोंसला है।
मौसमों, आकाशीय चौकीदारों, जानवरों, आत्माओं और उल्काओं की मार
झेलने के लिए खुले में तैनात। जब इस घोंसले पर आकाश गिरता है पैराशूट
पहने या बिना पहने तो यह धरती पर बिखर जाता है और इसके तिनकों में
उलझकर आया आकाश भी यूँ तिनकों की तरह बिखरेगा, रूपक देखते हुए
यह हमें मालूम नहीं था। 

अगर कहीं आपको वे दिख जाएँ जो हमारे सिर पर मँडराते हैं तो आपकी
जेब में दस रुपए तो होंगे ना?

इस पूरी संरचना से
बाहर
यहाँ कहता हूँ
मेरा अंतिम संस्कार आकाश में करना।

स्रोत :
  • पुस्तक : उर्वर प्रदेश (पृष्ठ 241)
  • संपादक : अन्विता अब्बी
  • रचनाकार : गिरिराज किराडू
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2010

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