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नदी ने मुझसे कुछ कहा

nadi ne mujhse kuch kaha

अनुवाद : एम. रंगय्या

दाशरथि

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    नदी ने

    मुझसे

    कुछ कहा

    उसकी तरंगें

    शब्द हैं

    दोनों किनारे

    कर्त्ता औ’ कर्म हैं

    प्रवाह

    क्रिया है

    मीन

    अर्थ है

    रेत

    ध्वनि है

    फिर भी नदी ने मुझसे क्या कहा?

    यही कि भूत, भविष्यत्

    औ' वर्तमान को वह जानती है

    मैं नदी के भीतर की नदी हूँ

    बातों के भीतर की बात हूँ

    गीतों के भीतर का गीत है

    नदी ने मुझसे अपनी व्यथा का बयान किया

    नगर में नदी की बात

    बड़ी विचित्र होती है

    नगर नदी से लड़ता है

    नदी के उदर में कटार भोंकता है

    नदी नगर को काटती है

    नौ दो ग्यारह हो जाती है

    नदी और नगर के बीच

    मैं पिसता जा रहा हूँ

    नगर मुझसे कुछ कहता नहीं

    वह मुझसे झगड़ता भी नहीं

    नदी मुझे व्यथित करती है

    मेरे हृदय के शोध में रत है

    कभी-कभी रो पड़ती है

    मुझे नदी अधिक प्रिय है

    यौवन के आवेग से

    आलोड़-विलोड़ करने वाली

    प्रौढ़ा के समान

    गहन आलिंगन में बँध जाती है नदी

    नदी से रहित ग्राम

    कोठरी से रहित धाम

    झाड़ियों से रहित दाव

    हृदय से रहित मानव

    किसे चाहिए!

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 130)
    • संपादक : माधवराव
    • रचनाकार : दाशरथि
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985

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