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मनुष्य सर्वशक्तिमान

manushya sarvashaktiman

अलेक्सेई सुर्कोव

अन्य

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अलेक्सेई सुर्कोव

मनुष्य सर्वशक्तिमान

अलेक्सेई सुर्कोव

और अधिकअलेक्सेई सुर्कोव

    देव नहीं है

    कोई अन्य शक्ति है

    जो ब्रह्मांड के नक्षत्रों को

    संचालित करती है

    शुरू-शुरू में

    ऐसा सोच-विचार

    कितना भयदायक होता था

    क्या यह सोचा

    तुम सकते हो सोच

    कि यह बिल्कुल सीधा था

    इतना सीधा

    जितना एक ग्लास पानी पी लेना

    मध्यम या सामान्य वर्ग के लोगों का

    फ़ानी मान स्वयं को लेना

    नहीं एक दिन यह आसान नहीं था

    जाग-जाग कर देखें नक्षत्रों को

    और गगन से उनका टूट बिखरना

    इस असीम को ताके

    और सोचकर

    हम मानव भिनगे जैसे हैं—

    काँप जाएँ

    आसान नहीं था

    कुहरा गहन निराशाओं का भेदन करना

    उस मनुष्य के लिए

    कि जिसने इस जीवन को

    धरती को चाहा था

    और जानता था यह

    उससे पहले वंश हज़ारों जन्मे

    महामृत्यु के अँधकार में

    डूब गए हैं

    आसान नहीं था

    साफ़ तौर से कर लेना स्वीकार

    कि तुम को मरना होगा

    जितना भी सौंदर्य तुम्हारी आँखों आगे

    उसको बेचैन तुम्हारे 'मैं' के साथ

    लुप्त हो जाना होगा

    और ज़िंदगी यह

    चलती ही चली जाएगी

    बिना किसी अल्लाह

    या कि मुक्ति देने वाले के

    जन्नत के सुख

    या कि जहन्नुम की पीड़ा के

    अतः पराजित करो ज्ञान से

    मृत्यु के भय को

    और नियति को

    मनगढ़ंत बातों से

    मुक्त करो अपने को

    ये चाक़ू की तेज़ धार-सी

    काटा करतीं मन को

    यह ही है कर्त्तव्य

    कि इस भौतिक जीवन का

    पूरा-पूरा सुख लो

    क़ुदरत गाती गीत मनुज का

    उसको सुन कर समझो—

    कोई शक्ति विचार नहीं इससे बढ़ कर हैं

    सर्वशक्ति का पुँज यहाँ पर

    केवल एक मनुज है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 138)
    • रचनाकार : अलेक्सेई सुर्कोव
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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