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हम ओका सीस नवाई थै

hum oka sees navai thai

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

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आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

हम ओका सीस नवाई थै

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

और अधिकआद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

    लखि के पियास यहि धरती कै जे रकत मिलावै माटी मा,

    जानै दुनिया कै अकिल गुम्म जे राह बनावै माटी मा,

    जंगल-जंगल परवत-परवत जे अलख जगावै माटी मा

    अपनी देही कै सत्त गारि जे फूल खिलावै माटी मा।

    हम ओका फूल चढ़ाई थै,

    हम ओका सीस नवाई थै।

    मूड़े पर सूरज धरे-धरे जे घरे-घरे बाँटे अँजोर,

    ओका ओतना, चाहे जेतना, केउका सेवाइ केउका थोर,

    सबकी रच्छा मा दौरि जाइ बाढ़ी नदिया मा पौरि जाइ

    जेकरे सुमिरे से धन्नि होइ हमरी देहीं कै पोर-पोर।

    हम ओह पर बलि-बलि जाई थै,

    हम ओका सीस नवाई थै।

    जेका देखे दुनिया हरषै बाह रे बहादुर वाह लाल,

    सादा जीवन निरभीक चाल बावनी रूप कीरत बिसाल,

    जब जब संकट कै घरी परै आगे बढ़ि-बढ़ि के धरै फाल

    आजानु बाहु उन्नत सुभाल अपनी बाँहन मा कसे काल।

    ओकै आरती सजाई थे,

    हम ओका सीस नवाई थै।

    स्रोत :
    • पुस्तक : माटी औ महतारी (पृष्ठ 44)
    • रचनाकार : आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
    • प्रकाशन : अवधी अकादमी

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