Font by Mehr Nastaliq Web

हम खलनायक

hum khalnayak

गंगा प्रसाद विमल

अन्य

अन्य

गंगा प्रसाद विमल

हम खलनायक

गंगा प्रसाद विमल

हम सब खलनायक हैं,

इस जीवन-त्रासदी नाट्य के,

मृगतृष्णा के पीछे दौड़ रहे

माध्यम-विहीन,

पीड़ित मृग हम सब खलनायक।

कोई नायक नहीं,

तभी तो हम सब जीते हैं,

(वरना खलनायक का अंत—

अंतिम परिच्छेद मृत्यु ही होगा)

अपने ही वक्तव्यों से हैं असंतुष्ट,

चेष्टारत हैं,

शायद अपना वक्तव्य कभी हो मान्य स्वयं को!

जैसे ही हम दर्शनार्थ प्रस्तुत होते हैं,

अभिनय नहीं किया करते,

जो सच है उसको बाहर देते हैं।

हो, कभी-कभी हम झूठ छिपा लेते हैं,

ओ' हाँ, यह नेपथ्य-निवासी

‘प्रांपटर’ विचार देता हमको—

हम कहें, सहें... ‘सच-झूठ’।

हम खलनायक,

जो वीर-धीर गंभीर नहीं कुछ,

सिर्फ़ 'पोज़' करते हैं,

शायद कोई दर्शक भ्रम से नायक हमें

मान ले!

हम अ-विजयी खलनायक

दिग्विजयी सपने पाल रहे,

हारे-जीते कुछ नहीं

खोए-खोए ख़ाली फिरते हम खलनायक,

हम सब खलनायक,

हम सब खलनायक हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : विजप (पृष्ठ 18)
  • रचनाकार : गंगाप्रसाद विमल
  • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
  • संस्करण : 1967

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY