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हम धरती की माड़ हैं

hum dharti ki maaD hain

वंदना टेटे

अन्य

अन्य

वंदना टेटे

हम धरती की माड़ हैं

वंदना टेटे

हम सब

इस धरती की माड़

इस सृष्टि के हाड़

हमारी हड्डियाँ

विंध्य, अरावली और नीलगिरि

हमारा रक्त

लोहित, दामुदह, नरमदा और कावेरी

हमारी देह

गंगा-जमना-कृष्णा के मैदान

हमारी छातियाँ

जैसे झारखंड के पठार

और जैसे कंचनजंघा

हम फैले हुए हैं

हम पसरे हुए हैं

हम यहीं इसी पुरखा ज़मीन में

धँसे हैं सदियों से

हमें कौन विस्थापित कर सकता है

सनसनाती हवाओं और तूफ़ानों-सी

हमारी ध्वनियों-भाषाओं को

कौन विलोपित कर सकता है

कोई इंसान?

कोई धर्म?

कोई सत्ता?

सिंगबोङा (सूरज) और चाँदबोङा को

इस जवान धरती को

कौन हिला सकता है

कह गई है पुरखा बुढ़िया

कह गया है पुरखा बूढ़ा

कोई नहीं, कोई नहीं…

स्रोत :
  • रचनाकार : वंदना टेटे
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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