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सीथियाई

sithiyaaee

अलेक्सांद्र ब्लोक

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और अधिकअलेक्सांद्र ब्लोक

    माना तुम हो लाखों

    लेकिन हम प्रचंडधारा अटूट हैं

    वेग हमारा रोक नहीं पाओगे

    हम हैं सीथियाई

    सोचो

    रक्त एशिया अपना

    सामूहिक भूखें वक्र बनाती हैं

    अपनी भृकुटी को

    धीमे शत-शत अब्द तुम्हारे

    अपने लिए मात्र घंटे-से

    चाटुकर गर्हित दासों-सा है यूरोप तुम्हारा

    मंगोल दलों से जिसे बचाता

    पर्वताकार विस्तृत अपार पौरुष अपना

    सदियों रोका षड्यंत्रों को

    तुमने हिम दरकन-सा

    सुनी पुकारें अनहोनी अनजान कथा-सी

    लिस्बन और मसीना की

    सदियों स्वप्न तुम्हारे सीमित थे पूरब तक

    लूटा माल चुराए मोती छिपा लिया सब

    धोका देकर घेरा हमको बंदूक़ों से

    इंतज़ार था तुमको गोली के इंगित का

    पहुँचा है समय

    क़यामत ने अपने डैने फैलाए

    बहुत कर चुके तुम अपमानित

    अब अपनी भृकुटी तनती है

    घंटा बजा कि हमने तोड़ा

    अहं तुम्हारे का दुखदायी घेरा

    ढेर लगाया दुर्बल पैस्तमों का

    अतः वृद्ध जग ठहरो

    वरना जो अंतिम आशा है

    उसका अंत निकट है

    लो प्रज्ञा से काम

    तुम्हारे चमत्कार अब श्रांत-क्लांत हैं

    वृद्ध ईडिपस

    स्फिंक्स खड़ा है अब भी

    इसके सम्मुख जाओ

    पढ़ो दृगों में गूढ़ पहेली

    स्फिंक्स रूस है

    इसमें है उल्लास विजय का

    फिर भी कष्ट उठाता

    रक्त बहाता खोज रहा है भाग्य स्वयं का

    दृष्टि ढकी है पाषाणी पलकों से इसकी

    घृणा-प्रेम से है पश्चिम को तकती

    गहन प्यार जो हमको

    करता उद्वेलित ख़ुशियों से

    उसको बहुत-बहुत पहले तुम ख़त्म कर चुके

    बहुत-बहुत पहले भूले आवेश प्यार का

    जिसको हमने जाना

    जो कि जलाता

    ख़ुद भी जलता हुआ ख़त्म होता है

    हम करते हैं प्यार सभी बातों को

    उदासीन लोगों के आवेशों को

    उनके द्वारा

    आश्चर्यजनक ढंग से देखे सपनों को

    हमें पता है सब बातों का

    फ़्रांसवासियों की प्रदीप्त मेधा का

    और निराशा में डूबे जर्मनवासी की

    नए विचारों की दुनिया का

    हमें याद है सब कुछ अब तक

    मौन्त मार्त्र की वह मधुशाला

    दूरागत नारंग-मंजरी की गंधों से प्लावित

    वेनिस की शीतल-मंद हवा

    कोलोन नगर के पाषाणों की ढेरी

    हम पसंद करते हैं मांस

    इसके रंग-रूप कच्ची-तीखी गंधों को

    जो हमें लुभातीं...

    यदि अस्थियाँ तुम्हारी

    कभी हमारे

    कोमल-कठोर पंजों में

    चरमर टूटें

    तो क्या हम ही दोषी होंगे

    हम में इतनी अधिक शक्ति है

    पकड़ बनैले अश्वों को भी थाम लिया करते हैं

    उनकी कूद-छलाँग-झपट सब व्यर्थ किया करते हैं

    आख़िर अदम्य जबड़ों में उनके वल्गा दे देते हैं

    ओर दासियों-सा उनको अपने वश में करते हैं

    अतः त्याग दो

    कलुषित मार्ग युद्ध का

    और देर होने से पहले

    शांतिमयी इन बाहों में जाओ

    रखो म्यान में बूढ़ी तलवारों को

    शांति बनी रहने दो

    भाईचारे से समाप्त नफ़रत को हो जाने दो

    अगर नहीं

    तो हमें ज्ञात हैं

    धोकेबाज़ी की सब चाल तुम्हारी

    नहीं दशा इससे कोई अपनी बिगड़ेगी

    किंतु तुम्हारा पश्चिम सदियों ध्वस्त रहेगा

    और तुम्हारी दुर्बल पराभूत संतानें

    तुम्हें गालियाँ देंगी

    यह दिखावटी मुखड़े वाला जो यूरुप है

    इसको अपने अंतहीन मैदानों

    विस्तृत वनों

    और शैवालयुक्त सरिताओं से मोहित कर लेंगे

    तोड़ मुखौटा इसका अपने एक वार से

    लगा एशियाई चेहरा इस पर देंगे

    इन प्रशस्त व्यापक विराट

    यूराल पहाड़ों तक आओ

    इनकी अँधियारी घाटी में आकर गरजो

    फिर भीषण विज्ञान-ज्ञान से

    देखो टक्कर बंजारों की

    और मशीनों के जत्थो से मंगोलों की

    अब और आगे

    रक्षा-रहित तुम्हारी सीमाओं की ढाल बनेंगे

    रक्तरंजित संग्राम भयंकर

    निर्विकार तिरछी आँखों से हम देखेंगे

    निर्मम हूण काटेंगे ढेरों शीश तुम्हारे

    भस्मसात् कर नगर उन्हें सूना कर देंगे

    गिरजों को वे बना अस्तबल देंगे

    श्वेत मांस की जलन-गंध

    सब कहीं फैलती होगी

    बूढ़े जग

    अमन चैन के लिए

    कह रहे हैं यह तुमसे

    दिवा-निशा सुखमय हो जिससे

    हो कल्याण सभी का

    हो आनंदित बंधु-भावना

    इसीलिए बर्बर वीणा का

    स्वर यह तुम्हें बुलाता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 48)
    • रचनाकार : अलेक्सांद्र ब्लोक
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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