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बड़शाह की पुकार

baDshah ki pukar

अनुवाद : रतनलाल शांत

अब्दुल अहद 'आज़ाद'

अन्य

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अब्दुल अहद 'आज़ाद'

बड़शाह की पुकार

अब्दुल अहद 'आज़ाद'

और अधिकअब्दुल अहद 'आज़ाद'

    दिल में हूक जो उठती है

    मन से संगीत फूटता जो

    कभी छिपाए नहीं छिप सके

    ऐसा है यह धन

    इसका उपयोग नहीं करता जो

    इसे गँवा देता है।

    नहीं रहा क्या ऐसा कोई मीत, हितैषी

    जिसकी रगरग में दौड़ रहा हो वही ख़ून

    हाय प्यार के वे 'कुमरी' पंछी

    किस की ओट लिए

    कहाँ छिपे बैठे हैं?

    वही हवा है

    ज़मीन वही

    सोते वही आज भी पहले जैसे उफन रहे

    नदियाँ वही

    बह रहा पानी इनमें वही

    देख रहा हूँ वे ही सीने

    ठंडे हुए बर्फ़ से ज़्यादा

    जो अपने भीतर की लय में (गरजा करते)

    उबला करते ज्यों कड़ाह

    मेरे हमवतन,

    नहीं क्या जाग जाओगे अब भी

    गंभीर नींद से?

    सर्वस्व तेरा तो गया

    जान भी अब क्या व्यर्थ गँवा दोगे?

    यह कौन प्यार की क्यारी है

    जिनमें ख़ामोश रमे बैठे

    पंछी बोलो तो

    क्या ग़म है तुमको भीतर-ही-भीतर खाए

    हो दुःख से बेख़बर पड़े,

    हो अचेत पीड़ा से भी

    काश होश में आए तू

    अपनी पीड़ा का ख़ुद कोई उपचार करे

    मैंने देखे हैं

    अँधियारे के हिमकण, ज्योतिर्मान मशालों से

    शीशमहल के दर्पण, ‘त्राहि त्राहि’ में फूटे

    आत्याचारी!

    कैसी आग लगाई तुमने

    कबूतरों के पंख जलाकर राख किए

    (फिर भी देखो)

    देख रहा हूँ, अब भी

    इनसे तो है बाज़ भी डरे

    जगह जगह

    बड़ा लाड़ला लल्लू है जो बंदा

    नहीं समझ सकता वह गति,

    ‘आज़ाद’ की

    वही अंग हमारा केवल

    जलन आग की समझे

    जो गिरता है आग के अंदर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 39)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : अब्दुल अहद 'आज़ाद'
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005

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